साहित्य चक्र

21 July 2019

बड़ी दूर से चलकर आये

नव निर्माण 
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आसमान पर ड़ाला ड़ेरा 
गाँव-शहर सबको आ घेरा 
बड़ी दूर से चलकर आये 
जाने कहाँ-कहाँ से आये 
तरह-तरह के रुप बनाकर 
बरसाते हैं मस्त फुहार 
आ गये बादल लेके उपहार 
समीर गा रही मीठी मल्हार 
सौंधी-सौंधी खुशबू आती 
कृषक मायूसी छटती जाती 
करे प्रतीक्षा सजनी चिट्ठी की 
भूले सजन सुध मिट्टी की 
मेघ बरसते-मन तरसते 
नयनों से नित झरने झरते 
कौन सुने प्यासी पुकार 
तपती धरती करे मनुहार 
रे बादल मनभर बरसना 
गरज-गरज कर बरसना 
रह न जाये अधूरी आस 
उढाये न कोई उपहास 
तेरा अंश-अंश धरती के अंग 
धरती के यौवन में उठे तरंग 
तेरा बरसना, बरस कर जाना 
श्रृष्टि का नव निर्माण करना 

                                    - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 



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