साहित्य चक्र

01 July 2019

सुनील पटेल के विचार-





1

उठाया हर दर्द उन्होंने प्रभावों में जिए पापा
न आए आंच हम पे इन दबावों में जिए पापा
सुलाकर के मुझे ए.सी. में गर्मी में सो जाते थे
मेरे आराम की खातिर अभावों में जिए पापा


2

 समंदर सा भरा हूं मैं, कभी साहिल नहीं हूं मैं
जो छूंरा गोप दे पीछे से वो कातिल नहीं हूं मैं
मेरी काबिलियत से अब तक अंजान है जो भी
वो कहते हैं इसे करने में, मैं काबिल नहीं हूं मैं


3

मुझे मालूम है षड्यंत्र सब उसके मुताबिक है
तसल्लीयां भी है झूठी और झूठी ही तारीफ है
वो जंग-ए-मैदान में सब कुछ आजमा ले पर
वो मेरी दोस्ती और दुश्मनी दोनों से वाकिफ है


4

हजारों मुश्किलों के बाद भी आसान है पापा
वो मेरा मान है सम्मान है अभिमान है पापा
मेरा कैरियर बनाने में नहीं कैरियर बना पाए
ख़ुदा जिनको समझता हूं वहीं इंसान है पापा


5

वो है उपहार ईश्वर का करें हम मान बेटी का
पिता की है यही इच्छा हो कन्यादान बेटी का
करे संकल्प की बेटी की आंखों में न आंसू हो
हमारी बात और लहजें में हो सम्मान बेटी का


6
नजर भर में समंदर को भला कैसे सुखा देना
मुझे पागल बना देना दिल को भी रूका देना
भूला तुमने दिया होगा मगर मैं कुछ नहीं भूला
मुझे तो याद है अब भी तेरा पलकें झुका देना


                                         - कवि सुनील पटेल सन्नाटा


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