साहित्य चक्र

05 July 2019

बलात्कार की व्यापकता...!





जब से मूलभूत आवश्यकताओं के अभाव में लोगों के मरने की समस्या खत्म हुई है, मानव जनित एक नई समस्या ने आकर समाज को घेर लिया है। मानव द्वारा मानव का बलात्कार। उम्र और लिंग को नजरअंदाज करते हुए बलात्कार। निजी और सार्वजनिक स्थलों पर बलात्कार। दुधमुहे बच्चों से लेकर मरणासन्न तक बलात्कार। समाज और कानून को धता बताकर बलात्कार। बलात्कार आज के समय में सबसे घृणित कुकृत्य है जिसका अंत अक्सर आत्महत्या होना है या पल पल मरकर जीना है। 

बलात्कार एक ऐसा कुकृत्य है जो आत्महत्या की ही तरह एक बार में न होकर कई बार के प्रयास से परिपूर्ण होता है। बलात्कारी कई चरणों को पूरा करते हुए बलात्कार के उस चरण तक पहुँचता है जो अपराध या हंगामा की श्रेणी में आता है। किसी को टकटकी लगाकर देखना, पीछा करना, गलत इशारे करना, निजी अंग दिखाना, अश्लील शब्द बोलना, स्पर्श करना, बल प्रयोग करना और फिर बलात्कार करना। इसमें कई चरण तक तो हम छेड़खानी के अन्तर्गत रखते हैं और मामूली चर्चा के बाद नजरअंदाज कर देते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि गंदी नज़र से देखना बलात्कार का प्रथम चरण है। एक बात यहाँ स्पष्ट करना जरूरी है कि अलग अलग चरणों में एक या कई अलग पीड़ित हो सकते हैं। 

बलात्कारी और पीड़ित दोनों हमारे इसी समाज के सदस्य होते हैं। हमारे ही घरों के परिजन होते हैं। हमारी मानसिकता तय करती है कि अन्य के प्रति हम कैसी सोच रखते हैं। व्यापक और संकीर्ण मानसिकता के रेंज में हमारा स्थान हमारी सोच को स्थायी बनाता है और उसी सोच के अनुरूप हम कार्य करते हैं। 

हमारे परिवेश, संस्कार, समाज और संस्कृति का हमारी आने वाली पीढ़ी पर सीधा असर पड़ता है। ह्यूगो ड ब्रिज के उत्परिवर्तन वाद ने यह साबित कर दिया है कि जीन पर तात्कालिक प्रभाव भी पड़ सकता है जो माता - पिता से इतर हो सकता है अर्थात् परिवेश जनित असर। रावण का दशमुख होना इसी प्रभाव का द्योतक था। 

अब जरा ठहरकर हमें पूरी ईमानदारी से यह सोचना चाहिए कि जैसा समाज और भावी पीढ़ी हम चाहते हैं, क्या हम उसके अनुरूप अभिभावक हैं? क्या हमारे द्वारा रखी गई बुनियाद हमारी अपेक्षा के अनुरूप है? क्या हम अपने आपको एवं अपने समाज को परिष्कृत कर इस मुकाम पर रखे हैं जहाँ से ऐच्छिक आगामी पीढ़ी का गठन हो सकेगा? विचारिए।

नारी को उपभोग की वस्तु तथाकथित विकसित देशों ने ही बना रखा है। नारी को खूबसूरत गुड़िया बनाकर बाजार विकसित किए गए हैं। विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता, ब्रह्मांड सुन्दरी प्रतियोगिता से कॉलेजों एवं कस्बों में भी सुन्दरी प्रतियोगिता का आयोजन होना उसी नारी आधारित बाजारवाद का हिस्सा है। हमारी विशालकाय आबादी उपभोक्ता के रूप में दुनिया को आकर्षित करती है और नासमझ नारियों की स्वार्थलिप्सा उनको गिरा रही है। मीडिया, चैनल, टीवी और इंटरनेट और उद्योगपति अपना धंधा चमका रहे हैं। हम समाज में ऐसी नारियों को प्रतिनिधि बनाकर सम्मानित कर रहे हैं जो आए दिन बलात्कार के किसी न किसी चरण तक सहर्ष पहुँचने वाली सीन को समाज में पहुँचाकर बाजारवाद को बढ़ा रही हैं........पैसे कमा रही हैं......बलात्कार की भावना को प्रज्वलित कर रही हैं। बेडरूम के गोपनीय सहवास को कुछ तथाकथित लोग हँसते हुए सार्वजनिक कर रहे हैं.....फ्लैट की सीढ़ियों से सड़कों तक ला रहे हैं जिनके खिलाफ हमारा समाज आवाज नहीं उठाता.......कानून दोषी नहीं मानता लेकिन ये अबोध बच्चों में उस पल को जी लेने की प्रबल आतुरता अंकुरित कर जाते हैं। छुपते छुपाते तृप्ति के साधन तलाशे जाने लगते हैं जो बलात्कार तक पहुँचा सकता है। अभिभावक बच्चों को सही-गलत समझाने की जहमत नहीं उठाते।

सिर्फ कानून का लचीलापन या फैसले की देरी ही जिम्मेवार नहीं है इस बढ़ते अपराध के लिए। सर्वप्रथम जिम्मेवार वह परिवार है जो बलात्कारी को त्यागने की बजाय संरक्षण व सहानुभूति देता है, पीड़ित/पीड़िता को तिरष्कृत कर अकेला छोड़ देता है। इस तरह अगले बलात्कार एवं नये नये बलात्कारी को न्योता देता है, समृद्ध एवं सम्बर्द्धित करता है। यह कदापि न भूलें कि आज के बच्चे बड़ों का आदेश नहीं मानते लेकिन नकल अवश्य करते हैं। इसलिए अपनी छवि और उससे निर्मित परिवेश को स्वच्छ बनाएँ। भावी पीढ़ी और उनसे निर्मित समाज स्वयमेव ही सही दिशा पर चलकर उचित दशा को प्राप्त कर लेगा।

                                                 डॉ. अवधेश कुमार अवध


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