कल्पना का बीज
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सुहृदय
रोप दिया था तुमने ,
कल्पना का जो बीज !!
अंकुरित हो कर
क्रमशः
अक्षर,शब्द ,
पंक्ति बन गया !!
भावना नीर,
संवेदना पवन,
अनुभूति प्रकाश,
मिलता रहा सतत ;
पल्लवित हुआ नन्हा
सृजन का पौधा !!
पुष्पित होने लगा,
खिलने लगे
गीत, दोहे, मुक्तक !!
महकने लगीं
मन की वादियाँ !!
कल्पना का वह बीज;
अब मेरे पोर -पोर में
पीर पैदा कर देता है !!
प्रसव वेदना सरीखी,
बड़ी अनूठी,मीठी !
प्रस्फुटित होते गीत
फूट पड़ते हैं
झरनों की भांति,
कल- कल करते
उनकी चंचलता
लुभाती बहुत है !!
कलम उत्तरीय से ढँकती,
दुलारती उन्हें,
और प्यार से चूम लेती है!!
तब महक उठते हैं गीत,
थिरकने लगती
रागिनी ,
अनन्त
स्वर लहरियों सँग!!
रागिनी स्वर्णकार
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