वफ़ा वालों से मत पूछो सितमगर से भी पूछो ना
न पूछो तुम किसी शीशे से पत्थर से भी पूछो ना
अगर गहराई से वाक़िफ जो होना चाहते हो तो
किनारों से ही मत पूछो समंदर से भी पूछो ना
नसीबों वाले है वो घर जहां पर है पली बेटी
शबरी बन प्रभु की राह तकने को ठनी बेटी
वो बेटी मारने वाले भला क्यों भूल जाते हैं
कभी हाडी, कभी झांसी, कभी दुर्गा बनी बेटी
वह होते नहीं तो मेरी शोहरत नहीं होती
उनके बिना पूरी कोई हसरत नहीं होती
दौलत तो खूब सारी कमा लेंगे हम मगर
मां - बाप से बड़ी कोई दौलत नहीं होती
वह होते नहीं तो मेरी शोहरत नहीं होती
उनके बिना पूरी कोई हसरत नहीं होती
दौलत तो खूब सारी कमा लेंगे हम मगर
मां - बाप से बड़ी कोई दौलत नहीं होती
मोहब्बत का अगर माने तो फिर दस्तूर है पापा
बहुत ही प्यार करता हूं में जिनसे गुरूर है पापा
यही इच्छा है कि मेरी हर एक ख्वाहिश पूरी हो
मेरी ख्वाहिश की खातिर ही मुझसे दूर है पापा
मेरे ख्वाबों, मेरी बातों में खोई बहुत होगी
लगा तस्वीर सीने से भला सोई बहुत होगी
ये उसकी आंख से निकले आंसू बताते हैं
मुझे मालूम है वो याद में रोई बहुत होगी
तरक्की मत समझना तुम ये बदलाव अच्छा है
हवेली छोड़कर आए हो नहीं पछताव अच्छा है
शहर में तो पड़ोसी अब तलक ही अपरिचित हैं
सभी मिलजुल के रहते हैं हमारा गांव अच्छा है
समूचे राष्ट्र का वंदन हो उसके सिलसिले में हो
तुम्हारी बात सुलझाने को हर मसअले में हो
सियासी हुक्मरानों बात तुम ये भूल ना जाना
तुम्हारी योजनाएं सब किसानों के भले में हो
निवेदन देशभर से मान तुम रखना किसानों का
हमेशा ठोंकरे खाई न कोई अपना किसानों का
पसीना खेत में गिरकर के हमसे कह रहा है ये
न भूखा सो सके भारत यहीं सपना किसानों का
फसल अच्छी हो पाए बस वे सारे ख्वाब सूखे हैं
कड़ी मेहनत और उम्मीद के सभी सैलाब सूखे हैं
इंद्र देवता से चीख़कर अन्नदाता कह रहा है ये
जरा जम के बरसना अब के सब तालाब सूखे हैं
बहुत खुश हैं भले नौकरी छोटी मिले उनको
उन्हें चाहत नहीं है की रकम मोटी मिले उनको
अगर ये भी ना कर पाओं तो उम्मीद यहीं है कि
कुछ ऐसा करो दो वक्त की रोटी मिले उनको
।। लेखक- सुनील पटेल ।।
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