*राधा का प्रिय तुम्हें कहूं, या मीरा का घनश्याम*
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कान्हा- कान्हा तुम्हें पुकारूं,मैं तो आठो याम ।
राधा का प्रिय तुम्हें कहूँ ,या मीरा का घनश्याम ।।
यमुना के तट छबि तुम्हारी ,
नील वरण जल धारा ।
तरु पर चीर चुरा कर बैठा ,
छलिया जग का न्यारा।।
तुम मनभावन हो गोकुल के कहता है नन्दधाम ,
कान्हा -कान्हा तुम्हें पुकारूं,मैं तो आठो याम ।।
हृदय दिया तुमको मनमोहन,
सुध बुध भूल गयी हूँ ।
रोम -रोम प्रेम पगा जब
कालिंदी कूल गयी हूँ ।।
रास रचाया जहां था तुमने,है वह स्थल हरिधाम,
कान्हा-कान्हा तुम्हें पुकारूं,मैं तो आठों याम ।।
बाँसुरी में प्राण बसे प्रिय,
मोर मुकुट मनुहारी।
बाँकी सी कान्हा की चितवन,
रूप छटा बलिहारी ।।
वैजयन्ती मुतियन की माला लगती ललित ललाम
कान्हा -कान्हा तुम्हें पुकारूं मैं तो आठों याम।।
थिरकत धीरे -धीरे माधुरी
अधरों पर मुस्कान।
जैसे प्रथम रश्मि की क्रीड़ा,
कलियों पर अम्लान।।
मकरध्वज कुंडल कानों में, प्रणयन के परिणाम ,
कान्हा-कान्हा तुम्हें पुकारूं मैं तो आठो याम ।।
रागिनी स्वर्णकार(शर्मा)
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