काश सुरा से औषधि की,
अदला-बदली कर लेते
मादकता की बोतल हटा ,
दवा की शीशी रख देते
याद करो वो दिन,जब माँ बहनें रोती थीं ,
शाराबी पत्तियों के जुल्मों को सहती थीं
अपने सुशासन के पथ पर
तुमने ऐसा पलटवार कीया
आय की सबसे बड़ी स्रोत पर
तब तुमने प्रहार किया
आज हर माँ का हृदय
चीख़-चीख के कहता है
पता नहीं था दारू के
पैसों राज्य चलता है
वो दर्द -दुःख सभी अन्याय हम सह लेते
तो आज अपनें लल्ला को दुर नहीं जाने देते
काश सुरा से औषधि की
अदला-बदली कर लेते
मादकता की बोतल हटा
दवा की शीशी रख देते !
सेवाजीत अभेद्य
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