साहित्य चक्र

01 July 2019

आख़िर पकड़ा गया वो दरिंदा....!

नजर में फिर नजर नहीं आया नजर लगानें वाला,
आख़िर पकड़ा गया वो दरिंदा शहर जलानें वाला,

खुद  को खुदा मानकर बिना खौफ के जीने वाला,
मर गया एक दिन फिर खुद को खुदा बताने वाला,


भरोसा उसका भी टूटा  जो, कभी  भरोसे  की मिशालें    देता   था,
नींद से जाग ही गया आख़िर,वो गहरी नींद से सबको जगाने वाला,

नफरतों के शहर में रहने वाला,जब पंहुचा मोहब्बत के शहर में एक दिन,
खुद से ही नफ़रत कर बैठा उस दिन से वो नफरतों को उगाने वाला,

प्यार को व्यापार समझने वालों प्यार की कद्र किया करों,
बड़ी मुश्किल से मिलता है प्यार करने और निभानें वाला,

धर्म,जाति,मजहबों  के  नाम  पर अब लड़ना बंद करों,
हमें आपस में लड़ा कर मजे लेता है फिर वो उकसाने वाला,

इस जहां आये हो तो काम ऐसा कुछ  कर  चलों,
कि याद रखें हमेशा ये जहां,और जहां में फिर आने वाला,

              -शिवांकित तिवारी "शिवा"


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