‘वर्तमान समय के सिनेमा जगत ने बच्चों की जिज्ञासा नामक प्रवृति पर मानों ग्रहण सा लगा दिया हैं । आज के बाल कलाकार, बाल साहित्यकार वा अन्य बच्चें चलचित्र के माध्यम से स्वयं के गीत, गजलों वा संगीत पर लय,ताल के साथ थिरकते हैं। जैंसे मानों कोई अभिनेता अभिनय कर रहा हो । यहीं प्रथा सभी भाषाओं और कथाओं के साथ बनती जा रही हैं । जैंसे कि किसी सोती हुई सुन्दरी का आकर्षक नृत्य राग– रागिनियों पर आधारित होकर भी वह पूर्णतः शास्त्रीयता के भार से मुक्त प्रतीत होती हैं।
वहीं वर्तमान समय में आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले बाल नृत्य ,गीत, ध्वनियाॅँ मानों विलुप्त सी होती प्रतीत हो रही हैं । जो कि सर्वथा अनुचित हैं क्योंकि आकाशवाणी का बाल कार्यक्रम बच्चों को कहानी ,कथा ,नाटक के माध्यम से जिज्ञासु और कल्पनाशील बनाने का कार्य करता हैं। इसलिए बच्चों को जिज्ञासु बनाए रखने के लिए हमें बच्चों को शिक्षा प्रद कहानियों और नाटकों के प्रति श्रव्य दृश्य सामग्री के माध्यम से उनमें नई ऊर्जा का संचार करने का विचार विमर्श करना चाहिए । जिससे बच्चे कल्पनाशील,कर्मठ, और जिज्ञासु प्रवृत्ति के हो सकें । जो कि वर्तमान समय के बदलते दौर के साथ नितान्त आवश्यक हो गया हैं ।’
रेशमा त्रिपाठी
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