साहित्य चक्र

06 July 2019

कुतर्क से वर्गीकृत हमारा समाज


हमारा समाज भी बेहद अजीब है, मगर मुझे अपने इस समाज से कभी गुस्सा नहीं आता है। अगर आप सहमत है, तो मैं अपने आप को धैर्यवान कह सकता हूँ। हमारे समाज में कोई व्यक्ति या समूह किसी की मौत को अगर अपने कुतर्क से वर्गीकृत करने का प्रयास करता है, तो बेहद ही दुख होता है। चाहे मरने वाला व्यक्ति चमार हो या ब्राह्मण ही क्यों ना हो। जो समाज इस घटना को कुतर्क से वर्गीकृत करता है, वह समाज मेरे नजरों में अपने शब्दों की नीचता से अपनी मर्यादा खो देता है। जहां एक ओर सदियों से मंदिरों में बैठे स्वघोषित बुद्धिमान और स्वघोषित श्रेष्ठ लोग है, तो वहीं दूसरी ओर अनपढ़ और जातिवाद से पीड़ित एक समाज है। जिसे कभी धर्म तो कभी जाति के आधार पर इधर-उधर बांटा जाता है, तो कभी पड़ताड़ित किया जाता है। आखिर यह कैसा समाज है। जहां एक पशु के नाम पर कई लोगों को मार दिया जाता है या संप्रदायिक दंगे भड़का दिए जाते है। मगर जब इसी समाज में कई दलित या निचली जाति के लोगों को मार दिया जाता है या पड़ताड़ित किया जाता है। तब हमारा समाज इसे धर्म के नाम पर छुपाने की कोशिश करता है। जो हमारे समाज के लिए सबसे बड़ा कलंक है।



इसी समाज में एक वर्ग ऐसा है, जो अंधविश्वास, पाखंड से गरीबों और दलितों को डर का अपनी दुकान चलाते है और वहीं लोग गरीब और दलितों को आरक्षण का डंक मारते फिरते है। इन लोगों को जातिवाद की वो बीमारी भी चाहिए और आरक्षण से छुटकारा भी। यानि पट भी इन्ही का- चट भी इन्ही की। जातिवाद और आरक्षण दोनों एक जैसी बीमारी है। जिसका इलाज संभव तो है, मगर थोड़ी-थोड़ी सा दर्द हर समाज और जाति के लोगों को सहना पड़ेगा।

वैसे अब पूरे भारत की गरीब जनता आरक्षण का हिस्सा है। मगर आज भी कई इलाकों में दलितों व छोटी जातियों को मंदिरों में प्रवेश करने की मनाही है। जो साफ तौर पर जातिवाद को दर्शाता है। आरक्षण तो इन्हें दिखता है, मगर जातिवाद से घिरा समाज, नगर कस्बा, खेत खलिहान, रिवाज नहीं दिखते। अगर पर इस समाज को सही से देखेंगे, तो आपको सिर्फ जातिवाद, धर्मवाद, रंगवाद, भेदभाव ही नजर आएगा। चाहे वह कोई सा भी समाज हो। हमें आज सोचना चाहिए, आखिर हमारे देश में आरक्षण की जरूरत क्यों पड़ी और आरक्षण सर्वप्रथम किन लोगों को दिया गया ?

संपादन- दीपक कोहली


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