साहित्य चक्र

23 August 2025

लेख- तानाशाह अथकथा


      बेशक तानाशाह बहुत डरपोक होता है।वह आमने-सामने किसी से नहीं लड़ सकता। वह निरीह जनता पर अत्याचार करके बहादुर बनता है और मन ही मन ख़ुश होता है कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे, लेकिन जनता को स्वामीभक्त बनाने की कला में माहिर अवश्य होता है और मातहतों की कमज़ोरी को कसकर पकड़े रहता है। 






यदि कमजोरी नहीं भी होती है तो कुछ ऐसा करने का खेल क्या लेता है कि मातहत की कमज़ोरी बन जाती है। अपने असंवैधानिक, अमानवीय, अलोकतांत्रिक, अवैज्ञानिक और अतार्किक कदमों को भी संवैधानिक, मानवीय, लोकतान्त्रिक, वैज्ञानिक और तार्किक बनाने का कुचक्र करते रहता है और तमाम ऐसे कार्यों में लिप्त उद्दंडों, चोरों, डकैतों, हरामियों और निकम्मों को अपने गिरोह में शामिल कर लेता है और उन्हीं से अपना बहुमत बनाए रखता है।वह सिर्फ और सिर्फ अपने मन की बात करता है, दूसरे के मन की बात सुनने की जहमत नहीं करता है। लेकिन जो उसके आचरण में तन-मन-धन से जुड़ा है उसे वह सारी नियामतें करता है जिसकी कल्पना मनुष्य तो कर ही नहीं सकता।

                 मुझे एक तानाशाह का किस्सा याद है।कारखाने का एक मिस्त्री ने उसके निरिक्षक गुर्गे से अर्जी की कि जो तनख्वाह उसे मिलती है उससे उसके बच्चों की रोटी नहीं चल पाती है लिहाज़ा उस पर मेहरबानी की जाए। पता चला कि दूसरे दिन उस मिस्त्री को बुलाकर गोली मारी दी गई।उसी तानाशाह की एक दूसरी कहानी भी सुनने को मिली कि जिस शख्स ने उसे इस काबिल बनाया उसे किसी कार्यक्रम के दौरान झपकी आ गई, उसे उसने चौराहे पर सैनिकों से गोली से उड़वा दिया।

                   मध्ययुगीन तानाशाहों की क्रूरतम गाथा तमाम लोग पढ़े होंगे कि वह कैसे अपने विरोधियों को सज़ा देते थे। कैसे बल्लम की नोक पर उन्हें टांग दिया जाता था। औरतों तक को नहीं बख्शा जाता था।एक तानाशाह कैसे गैस चैम्बरों में डालकर मारता था। दर्जनों विरोधियों को क्रूरतम सज़ा देते समय बीच में बैठकर खाना-दारू पीते हुए अट्टहास करता था। आज़ भी तमाम जेलों की कहानियां छन-छन कर आ जाती हैं।यह भी कि तमाम कैदियों, औरतों, बच्चों के साथ, भूखे-प्यासे रखकर, क्रूरतम-- दिन में कई बार उनके जेलरों -सिपाहियों द्वारा- रेप करके मार डाला ‌जाता है।ऐसे ज्यादा जानने के लिए आपको मध्ययुगीन सजाओं के तरीकों को जानना पड़ेगा। तानाशाह यही करता है।

                  ‌तानाशाह कभी जनता से बात नहीं करता।वह चाहता कि जो वह कहे या करे- गलत या सही- जनता उस पर खूब तालियां बजाए और कहे कि क्या सोच है 'न भूतो न भविष्यति' ।अपनी तानाशाही बरकरार रखने के लिए सारी युक्तियां लगाता है। लोग क्या कहेंगे, दुनिया क्या कहेगी या देश ही बिक जाए, उसे उसकी कोई परवाह नहीं रहती।वह लाशों की कब्रगाहों पर नाचते हुए मुस्कुराता है और बारूद की ढ़ेर एकत्रित करते चलता है ताकि लोग डरकर उसका विरोध न करें।





                   पंचतंत्र की एक कथा मुझे याद है जिसमें एक तानाशाह साल में एक बार अपनी नंगी यात्रा निकालता रहता था और प्रजा तालियां बजा -बजा कर स्वागत करती, तारीफ़ करती और फूल बरसाती थी। एक बार यात्रा की ख़बर पर एक छोटा बच्चा ज़िद कर गया कि वह भी राजा की सवारी देखेगा।बाप उसे मना नहीं सका हालांकि उसमें बच्चों की जाने की मनाही थी। क्योंकि बच्चे जो देखते हैं,वहीं बोलते हैं।वह बच्चा बाप के कंधे पर सवार था, हालांकि बाप ने चुप रहने की शर्त पर कंधे पर बिठाकर ले गया था।जब सवारी निकली तो बच्चे ने किलक कर कहा अरे रे राजा तो नंगटा है! बाप बेहद डर गया। आस-पास के लोग भी कि राजा सुना होगा तो फांसी पर चढ़ा देगा। गनीमत थी कि बाप उसे लेकर काफी पीछे हट गया और राजा लड़के की बात नहीं सुन पाया।

                 तानाशाहों की कहानी भी कुछ ऐसी ही होती है।ये शेर की खोल पहने होते हैं, शेर होते नहीं।ये अपनी मौत कभी नहीं मरते।ये या तो जन विद्रोह में मारे जाते हैं या फिर स्वत: डर से आत्महत्या कर लेते हैं। हमारे आस-पास बहुत ऐसी घटनाएं हो रही हैं, हो चुकी हैं या भविष्य में ऐसे संकेत मिल रहे हैं।बस हमीं बाकी हैं जहां ऐसी संभावनाएं दूर -दूर तक नहीं हैं इसलिए हम भाग्य, भगवान,प्रारब्ध, पाप-पुण्य, स्वर्ग -नरक और अगले जन्म को सोचते हुए मोक्ष की कामना करते हैं।जब भगवान की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं डोलता या 'कर्म से कम भाग्य से ज्यादा नहीं मिल सकता' तो हम कौन हैं जो किसी तानाशाह को मिटाने की जहमत उठाएं! भले ही ख़ुद मिट जाएं क्योंकि भगवान ने तो पहले ही तय कर दिया है। इसीलिए हम विरोध और दमन को सहते हुए परलोक सिधार जाते हैं।


                  'कोउ हो नृप हमैं का हानी' को मन में बिठा लिए हैं क्योंकि यह हमारे अनुकूल है लेकिन उसी कवि की दूसरी पंक्ति- 'कर्म प्रधान विश्व कर राखा' को फटकने नहीं देते। दरअसल हम एकांगी हैं काम से भी और मन से भी। यही एकांगपना हमारे लिए परेशानी का सबब है और तानाशाह इस बुराई को और हवा देता है और अपनी मनमानी थोपते चलता है। वह जानता है कि आम जनता यही चाहती है। वह जानता है कि वह कहेगा कि घर में बत्ती गुल कर दो तो जनता बत्ती गुल कर देगी।वह कहेगा कि थाली बजाओ तो थाली बजाने लगेगी।उसका प्रयोग हमेशा सफ़ल रहा।






                     हां,एक बात और। आज़ का तानाशाह सीधे नहीं चलता। वह रास्ता बदलते रहता है।जब तक आप बदलाव पर विचार करेंगे तब तक वह दूसरा प्रयोग कर लेगा और आप माथा पीटते रहे जाएंगे।जब हमारे यहां बेहद अच्छे राजा ने दोबारा चुनाव अच्छे कार्यों के बल पर सत्ता में आ गया तो हमारा पड़ोसी तानाशाह ने तमाम प्रवंचनाओं के आधार पर चुनाव जीत कर कहा 'देखो हम भी चुनाव जीत कर आ गये'! हालांकि वह बाद में देश छोड़कर भाग गया। फिलहाल हम ऐसी हालात नहीं पैदा करेंगे कि तानाशाह को देश छोड़ना पड़े! हम बेहद सहनशील, सहृदय प्राणी हैं! तानाशाह बेचारा ग़लत करेगा तो ऊपर वाला कभी न कभी दंड अवश्य देगा! नहीं कुछ तो नरक तो देगा ही! हालांकि वह भले ही अन्दर से बहुत डरपोक हो मगर बाहर से ताकतवर दिखता है! वह विरोधियों को, क्या भगवान को भी ऊंगली पकड़ कर उनको सही जगह पहुंचाने का उस्ताद है। तथास्तु।



                                             - डॉ. के एल सोनकर 'सौमित्र' 




(नोट- यह लेखक के स्वयं के विचार हैं।)




1 comment:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद

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