यह कोई कहानी नहीं बल्कि हक़ीक़त है, एक ऐसी हक़ीक़त जो बताती है कि अगर इरादा पक्का हो, तालीम (शिक्षा) की रोशनी को पकड़े रखा जाए और मेहनत व सब्र (धैर्य) का सहारा लिया जाए तो गरीबी और मुश्किलें इंसान का रास्ता नहीं रोक सकतीं।
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यह दास्तान है मुश्ताक अहमद और उनकी पत्नी सलमा शाह की, जिनका जीवन कम उम्र की शादी, तंगहाली, ज़िम्मेदारियों और संघर्ष से शुरू हुआ लेकिन उन्हीं कठिनाइयों के बीच से उन्होंने अपने परिवार को कामयाबी तक पहुँचाया और खुद भी समाज के लिए मिसाल बन गए।कम उम्र में शादी हुई, न पढ़ाई पूरी हुई थी, न साधन थे, न रोज़गार। माता-पिता की विरासत में मिला सब कुछ सिर्फ़ संघर्ष और गरीबी था। लेकिन शादी के बाद मुश्ताक और सलमा ने यह ठाना कि वे अपनी पढ़ाई अधूरी नहीं छोड़ेंगे।
दिनभर की जिम्मेदारियाँ निभाते, रात को दूसरों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर कुछ पैसे कमाते और फिर देर रात तक खुद पढ़ाई करते। नींद और आराम छिन गए, मगर तालीम (ज्ञान) की प्यास और मक़सद (लक्ष्य) ने उन्हें टिकाए रखा। मुश्ताक अहमद ने हार नहीं मानी और बी.एड. की डिग्री हासिल की, इसके साथ ही नेचुरोपैथी की डिग्री भी पूरी की और आगे चलकर आयुर्वेद की तालीम भी प्राप्त की। फार्मेसी की पढ़ाई भी अधूरी न रही,दूसरी तरफ़ सलमा शाह ने भी अपना सपना पूरा किया, उन्होंने शहर जाकर ग्रेजुएशन और पढ़ाई की।
पॉलीटेक्निक कॉलेज से संबद्ध होकर गांव की महिलाओं बच्चियों को सिलाई कढ़ाई की शिक्षा भी दी,उस दौर में खर्च इतना तंग था कि इन दोनों ने अपने खर्चे खुद उठाए, अक्सर रातों की नींद बेचकर शिक्षा का उजाला थामा।संघर्ष की इस डगर पर चलते हुए मुश्ताक अहमद ने कई नौकरियाँ भी कीं। वे सबसे पहले ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी (बलड़ी, जिला खंडवा) बने।
इसके बाद उन्होंने शिक्षा की दुनिया में कदम रखा और उर्दू माध्यमिक शालाबलड़ी में प्रधान पाठक की जिम्मेदारी निभाई। अपनी मेहनत और लगन से वे आगे बढ़े और ज्ञानदीप हायर सेकेंडरी स्कूल, मगरधा (जिला हरदा) में प्राचार्य बने। यह सब केवल रोज़गार नहीं था बल्कि समाज में शिक्षा और जागरूकता फैलाने का उनका मिशन था।
आज भी उनका वर्तमान पेशा चिकित्सा सेवा है, जहाँ वे लोगों की तंदुरुस्ती के लिए काम कर रहे हैं और समाज की बीमारियों को दूर करने में अपने तजुर्बे और ज्ञान के सहारे योगदान दे रहे हैं।शादी के बाद परिवार बढ़ा और छह बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारियाँ जुड़ीं। हालात बेहद कठिन थे, लेकिन मुश्ताक और सलमा ने अपने बच्चों को वही सबक सिखाया जो उन्होंने खुद जिया ,मेहनत, ईमानदारी, सब्र और तालीम की अहमियत।
यह उनके संस्कार ही थे कि गरीबी में पले हुए बच्चे डॉक्टर, डेंटल सर्जन और फार्मासिस्ट बने।बड़ी बेटी नीलिमा ने BDS किया और एक कुशल डेंटल सर्जन बनीं। बेटे समीर ने भी BDS कर डेंटिस्ट के रूप में कार्यभार संभाला। साथ में pharmacist भी हैं समीर,तीसरी संतान बेटी रिज़वाना ने BHMS (होम्योपैथी) में डॉक्टरी की डिग्री हासिल की और खुद का मेडिकल स्टोर भी खोला pharmacist भी हैं।
रिज़वाना।बेटा ज़ुबैर ने BAMS (आयुर्वेद) कर आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में समाज को सेवा दी।बेटी आरज़ू ने भी BAMS (आयुर्वेद) किया और लोगों की निरंतर सेवा में लगी हैं। सबसे छोटा बेटा अमन फार्मासिस्ट है, और फिलहाल NEET की तैयारी कर रहा है ताकि MBBS की पढ़ाई कर आधुनिक चिकित्सा में अपना योगदान दे सके।
एक-एक बच्चे की यह सफलता माता-पिता के त्याग, सब्र और लगातार संघर्ष का नतीजा है।इसी बीच सलमा शाह ने भी घर-परिवार से आगे जाकर समाज सेवा की राह पकड़ी। वे आशा सुपरवाइज़र बनीं और गाँव-गाँव जाकर स्वास्थ्य जागरूकता, प्रसूता माताओं और नवजात बच्चों की देखभाल, महिलाओं का मार्गदर्शन करने में अग्रणी रहीं। उनके सेवाभाव ने उन्हें पूरे समाज में पहचान और सम्मान दिलाया।
उन्हें आज एक जागरूक महिला, सेवाभाव की मूर्ति और त्याग की मिसाल के रूप में जाना जाता है।दूसरी तरफ़ मुश्ताक अहमद ने सिर्फ़ शिक्षा और नौकरियों तक खुद को सीमित न रखते हुए व्यावसायिक तौर पर भी कदम रखा। उन्होंने मेडिकल स्टोर खोला और दवाइयों के व्यापार के साथ स्वास्थ्य सेवाओं में लोगों को सस्ती और सही दवाइयाँ उपलब्ध कराईं। मज़दूरी और तंगहाली से गुज़रे इंसान ने जब लोगों को दवाइयाँ दीं तो यह सिर्फ़ व्यापार नहीं बल्कि सेवा का काम था।इतना ही नहीं, मुश्ताक अहमद एक बेहतरीन लेखक भी बने।
उनके संघर्ष और जज़्बात उनकी कलम में ढलकर किताबों, कविताओं, ग़ज़लों और लेखों के रूप में सामने आए। उनकी लिखी रचनाएँ समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती हैं। उनमें दर्द, उम्मीद, जद्दोजहद और सबक़ की सच्ची तासीर है।
उन्हें पढ़कर लगता है जैसे हर पंक्ति उनके जीवन का क़िस्सा सुना रही हो।आज मुश्ताक और सलमा शाह का परिवार खुशहाल है। उनकी मेहनत और त्याग से उनके बच्चे डॉक्टरी और फार्मेसी की दुनियाँ में समाज की सेवा में लगे हैं। सलमा शाह आशा सुपरवाइज़र होकर महिलाओं और बच्चों की सेवा से समाज का मान बढ़ा रही हैं।
मुश्ताक अहमद एक ओर चिकित्सा सेवा और व्यवसाय के जरिए लोगों को राहत पहुँचा रहे हैं तो दूसरी ओर अपनी कलम से समाज को विचार और सबक़ दे रहे हैं।यह दंपति आज इस बात की जीवित मिसाल है कि हालात कितने ही कठिन क्यों न हों, अगर सब्र, मेहनत और तालीम का सहारा लिया जाए तो इंसान अपनी तक़दीर खुद बदल सकता है।
उनके संघर्ष और कुर्बानी ने साबित कर दिया कि गरीबी,मंज़िल नहीं, बल्कि जद्दोजहद के सहारे इज़्ज़त और कामयाबी की राह बनाई जा सकती है। मुश्ताक अहमद और सलमा शाह की यह दास्तान हमेशा याद रखी जाएगी,यह सिर्फ़ एक परिवार की कहानी नहीं बल्कि पूरी कौम के लिए एक रोशन चिराग़ है जो आने वाली नस्लों को राह दिखाती रहेगी।
- डॉ. एम. ए. शाह