सोशल मीडिया में इन दोनों हिंदू राष्ट्र की मांग बहुत आम सी होती जा रही है। इस मांग के पीछे देशद्रोही ताकतें काम कर रही है। देश में बेरोजगारी और महंगाई अपनी चरम सीमा पर है, मगर युवाओं को हिंदू राष्ट्र का झुनझुना पकड़ा कर गुमराह किया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है- आखिर युवाओं को गुमराह क्यों किया जा रहा है ?
भारत में अलग राष्ट्र की मांग पहली बार नहीं उठ रही है बल्कि पहले भी खालिस्तानी (पंजाब) और तमिल में भी अलग राष्ट्र की मांग उठ चुका है। इसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ा है। आजादी से पहले भारत हजारों राजवाड़ों में बांटा था। उन सभी राजवाड़ों को सरदार वल्लभभाई पटेल ने खत्म कर भारत को एक सूत्र में बांधा था। मगर आज कुछ नफरती चिंटू हिंदू राष्ट्र की मांग करके भारत को फिर से विभाजनकारी षड्यंत्र के तहत खंडित करना चाहते हैं।
हिंदू राष्ट्र की मांग उसी प्रकार से गलत है जिस प्रकार से खालिस्तानी की मांग गलत थी। आज कुछ लोग हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे हैं तो कल को कोई सिख राष्ट्र मांगेगा और परसों कोई जाति के आधार पर राष्ट्र मांगेगा तो आखिर कब तक इस तरह के षड्यंत्र देश के अंदर चलते रहेंगे।
आखिर सरकार इस तरह की मांगों पर चुप्पी क्यों साधी बैठी है, क्या सरकार भी चाहती है देश का विभाजन फिर से हो ? नहीं तो सरकार को इस तरह की मांग उठाने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। विपक्ष को भी इस तरह के षड्यंत्रकारी मांगों को मुद्दा बनाकर सरकार को संसद से लेकर सड़क तक घेरना चाहिए।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हिंदू राष्ट्र के विचार को खारिज करते हुए कहा था कि यह पागलपन से भरा विचार है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और इस देश पर किसी एक धर्म का राज नहीं हो सकता है।
पटेल के इन विचारों को हम सभी को समझना चाहिए और उन लोगों को भी समझना चाहिए जो हिंदू राष्ट्र की मांग कर देश को विभाजनकारी परिस्थितियों की ओर धकेल रहे हैं। अगर हिंदू राष्ट्र के पीछे बहुसंख्यक होने का तर्क है तो फिर इस आधार से हिंदू धर्म में भी विभिन्न जातियां हैं तो फिर बहुसंख्यक जाति का राज होना चाहिए। इसलिए कुतर्क बातों के आधार पर देश को विभाजित करने वाले संगठनों और लोगों के खिलाफ हम सभी सच्चे और स्वतंत्र भारतीयों को आवाज़ उठानी होगी।
- दीपक कोहली

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