हमारे देश में हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते हैं। मगर जब भी यूपी और बिहार में विधानसभा चुनाव होते हैं तो पूरे देश में चर्चा होती है। क्योंकि ये दोनों राज्य जनसंख्या की दृष्टि से बहुत बड़े हैं। और राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि इन राज्यों के विधानसभा चुनाव देश की राजनीति तय करती है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी यानी राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आई थी।
इस चुनाव में तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर नीतीश कुमार और अमित शाह को पानी पिला दिया था। एक तरफ युवा तेजस्वी तो दूसरी तरफ अपार अनुभव से भरे दिग्गज राजनेता थे। कहा जाता है कि बिहार विधानसभा चुनाव-2020 में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के कारण तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए।
इस बार महागठबंधन और एनडीए में सीट बंटवारे से लेकर मुख्यमंत्री पद को लेकर काफी खींचतान देखने को मिल रही है। महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया है जबकि एनडीए ने अभी साफ नहीं किया है कि उनके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। हां एनडीए का कहना है कि नीतीश कुमार के चेहरे पर ही वह चुनावी मैदान में है। बाकी तो चुनाव परिणाम बताया कौन मुख्यमंत्री बनता है और राजनीति क्या मोड़ लेती है।
मुख्यमंत्री के सबसे लोकप्रिय चेहरे के तौर पर तेजस्वी यादव पिछले एक साल से लगभग हर सर्वे में शीर्ष स्थान पर दिखाई देते हैं। मगर सवाल है क्या तेजस्वी की लोकप्रियता राष्ट्रीय जनता दल को वोट दिला पाएगी ? या नीतीश का अनुभव तेजस्वी उदय को होने से पहले ही एक बार फिर रोक देगा ? नीतीश पिछले 20 सालों से बिहार की राजनीति में अपना किला बनकर बैठे हैं। चाहे कोई पार्टी कितनी ही सीट जीत जाए, मगर बिना नीतीश चच्चा के सत्ता पाना पिछले 20 सालों से असंभव हुआ है।
अभिमन्यु की तरह तेजस्वी रोजगार, पलायन और विकास के मुद्दों के साथ अपने रथ को विजयी की ओर लेकर तो जा रहे है। मगर राजनीतिक युद्ध के महारथी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और गृहमंत्री अमित शाह के साथ पूरी एनडीए तेजस्वी का राजनीतिक वध करने में लगे हुए हैं। ऐसे में देखना होगा क्या तेजस्वी अभिमन्यु की तरह मारे जाएंगे या फिर एनडीए के चक्रव्यूह को भेद कर अपनी राजनीतिक कौशल का परिचय देंगे।
- दीपक कोहली

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