साहित्य चक्र

20 November 2025

आज की प्रमुख रचनाएँ- 20 नवंबर 2025




ठंडी व्यार

ठंडी ठंडी व्यार अब ये अहसास है करवाती
सर्दी के मौसम का आगमन है जताती।
सुबह-शाम की ठंड ठिठुरन है बढ़ाती
पर दिनभर की धूप ठंड दूर है भगाती।
हल्के गर्म कपड़े भी ओढ़  लिए अब
न जाने बरखा की ठंडी फूहारें आएगी कब।
वो बर्फ के फाहे न जाने गिरेंगे कब
सर्दी की खूबसूरती और बढ़ेगी तब।
बाजार में मूंगफली, गचक व रेवड़ियां रौनक लाई
घर पर चूल्हे की कीमत भी बढ़ने को आई।
हवा में खुश्की व ठंडक को है पाया
तभी तो रजाई ओढ़ने को मन कर आया ।
पंछी भी ठिठुरन महसूस करते
धूप खिलने पर ही दाना चुगने निकलते।
अब तो सूखी ठंड से निजात मिले
ताकि वो मुरझाए फूल भी खुशी से खिले।


- विनोद वर्मा


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बरसत बदरा तड़पत किसान

कातिक मास की भोर मौसम अब गर्राए,
फसल कटत की बेराँ बदरा फिर चढ़ आए।
चार मईना तन मन धन सब करौ खेत में निछावर,
खरयान में रखबे सें पैलेंईं चढ़ गए बदरा के तेवर।
बंगाल की खाड़ी ताईं एक तूफान आओ है मोथा,
कुदरत को किहिर ऐसौ जीनें कर दओ हमें सबई जगा सें रोता।

बिरम्म महूरत में उठकें यी लहराई
फसल को देखतें हम करत ते अपनी छाती चौड़ी,
मौसम की ऐसी मार पड़ी के
अब लगतई के ना पापें हम जासें फूटी कौड़ी।
टप टप टप टप बूंद बरस रई,
हम किसान-किसानिन की आत्मा भौत तड़प रई।
रोक देओ जा आफत खों कायकि खेत पूरो भर रओ,
किसान परबार भगवान सें जई बिनती कर रओ।

फसल की भई बर्बादी चौतरफा तला बन गए खेत,
फिर भी आस लगाएँ देख रओ किसान अपने खेत।
आफत की यी मार में फूट-फूट कें रो रओ किसान,
किसान की तपस्या कौ पूरौ फल काय नईं दे रए सिरकार-भगवान।
फसल की बौनी-बखन्नी उर लग्गत के लाने लए ते जौन उधार,
साऊकार कौ बियाज भी देनें लेकिन यी बेर हो गओ सब बेकार।
का हुइए अब करन की पढ़ाई को,
मुन्नी कौ बस्ता-किताब उर सिलाई को।

देखे हते कछु सपने हमनें भी के हमाई बिटिया भी बनें कलेक्टर।
बा भी एक दिनां आए घरे लेकें एंबेसडर।
आज जा आफत की मार नें फोर दए हमाए सबरे करम,
जौन कछु सोचो तो अबे लौक सब लगन लगो भरम।
कातिक मास की भोर मौसम अब गर्राए,
फसल कटत की बेराँ बदरा फिर चढ़ आए।


- शुभि यादव


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नारी की बेदना पर तीन मुक्तक

काल के कपाल ने, दे दिया उपहार जो,
मिटा न सका कोई, नियति के प्रहार को।
हो रहा जो भी कुछ, उसे आज सवॉर कर,
नारियां पहनती हैं स्वयं, वेदना के हार को।

नारी की अस्मिता क्यों, प्रश्न चिन्ह आज है,
बदले हुए नर यहॉ, या बदला हुआ समाज है।
कोमल गात ही क्या, आज दोष पूर्ण है।
अहिल्या की कथा क्या, आज की आवाज है।

प्रकृति की तरह नारी, आज अभिसिक्त है,
पाकर भी सब कुछ, अंचल उसका रिक्त है।
पुरूष की कृपा पर आज उसका मान है।
जबकि उसके अन्तर में, हर भाव ही सिक्त हैं।


-रत्ना बापुली


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शब्दों की हुंकार

मेरी आंखों में कल्पनाएं तैरती हैं
और होठों पर लय,
लेकिन मुझे नहीं आता गुनगुनाना
मुझे आता है शब्दों को इकठ्ठा करना
उनका शृंगार करना, उन्हें क्रम में बांधना
मुझे नहीं आता उन शब्दों पर थिरकना
बिना संकोच मैं उनमें डूब जाती हूं
और खुद एक नए किरदार में
जन्म ले लेती हूं...
बनाती हूं पंक्तियों के गुलदस्ते
और सजाती हूं काव्य की फुलवारी में
जिससे महक उठता है मेरा सृजन
मेरी आत्मा और मैं!
मेरी उंगलियां थपथपाती हैं कलम की पीठ,
तब हर्ष और उल्लास में कलम सजा देती है
कुछ और नए शब्दों के मोती...
और मैं मुस्कुरा देती हूं कलम के नृत्य पर।
मैं भरना चाहती हूं पृष्ठ का खालीपन,
शब्दों की भीड़ से,
पहुंचाना चाहती हूं उन शब्दों की हुंकार
तुम तक... तुम्हारे हृदय तक...
इस पृथ्वी से... उस क्षितिज तक!


- मंजू सागर


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संवाद की सम्भावनाएँ

रिश्तों के बीच,
कुछ फासले बनाए रखिये।
नज़दीकियाँ, कभी-कभी
नासूर बन जाती हैं।

और फिर एक दिन,
मन के आवेश बढ़कर,
शब्द-रथ पर चढ़कर।
सामने प्रहार करते हैं, तो
रथि भी प्रत्युत्तर में,
विष बुझे वाण को सन्धानते।
जिह्वा की कमान तानते।

अनिर्णय की स्थिति में,
तत्काल विराम पा जाता समर।
मगर शीत युद्ध चल रहा होता,
मन के भीतर प्रत्येक-प्रहर।

संवाद की सम्भावनाओं की,
छोटी खिड़की सदैव खुली रखना,
ताकी मुआफ़ी की आवाज़ उस होते,
तुम्हारे अंतर्मन में आ सके।

विसर्जित करना अपने क्रोध को,
और आलिंगन होने देना उसे।
शायद तुम्हारे आंखों की गंगा,
मिलकर उसके यमुन-जल से,
हृदय-स्थल को संगम कर दे।

पुर्वाग्रह के शाकल्य की आहुति,
कर देना हवन पश्चाताप की अग्निमें।
खत्म करना विद्वेष के पाप को,
निर्मल कर लेना अपने आप को।


- प्रीतम कुमार पाठक


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जीवन का आधार है पुस्तक

जीवन का आधार है पुस्तक
भव सागर से पार है पुस्तक

सोचने समझने का सार है पुस्तक
कभी पुरुष कभी नार है पुस्तक

किस्मत का भंडार है पुस्तक
जीने का आधार है पुस्तक

दिल दिमाग का माइंड वास है पुस्तक
दुकानदारों का व्यापार है पुस्तक


- मनोज कौशल


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पुस्तकों से नाता रहा अपना
ज्ञान प्राप्त करना रहा सपना
कविता पढ़ना, कहानी सुनाना
लक्ष्य रहा अपना,
पुस्तकों से नाता रहा अपना...
पुस्तकें ही है सच्ची साथी
कभी न छोड़ती साथ,
झंकृत करती ज्ञान के तंतु
झुकने नहीं देती माथ,
सभा, महफिलों में यही पुस्तकें
करती दो-दो हाथ,
इन्हीं पुस्तकों को पढ़कर प्यारे
मिटता हिए का अन्धकार,
दक्ष बनाती पढ़ने वाले को
रखतीं हमेशा सरोकार,
पुस्तक समझाती पाठक को
छोड़ नही मेरा साथ
पुस्तकें ही है सच्ची साथी
झुकने नहीं देती माथ...


- बाबू राम धीमान


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पुस्तकों के नाम

पुस्तकों से ही लोहे में धार होगा
पुस्तकों से ही सबका उद्धार होगा

पुस्तकों से जिसको इश्क़ हुआ है
आलम भव सागर से पार होगा

पुस्तकों से फलक में उजाला है
वर्ना पूरा ब्राह्मण में अंधकार होगा

ज्ञान से ही जानवर इंसान में फर्क है
वर्ना हर शख्स बनता मजार होगा

ज्ञान से ही सभ्यता का उदय हुआ है
नहीं तो उबलता हुआ अंगार होगा

जहाज,टीवी, मिसाइल, मोबाइल।
संभव हुआ है जब ज्ञान का आधार होगा


पुस्तकों से ही एक युग से दूसरे युग में
प्रेम मुहब्बत का प्रचार प्रसार होगा

कलम दवात है जब दुनिया में
हर घटना ,सूचना अखबार होगा


- सदानंद गाजीपुरी


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पढ़े पुस्तक

लोगों ने है क्या-क्या पाले,
मुझको तो पुस्तकों ने पाले।

पुस्तकों से जब खेलता प्यारे,
मिलता सुकून दिल को प्यारे।

पन्नों में है जो छुपे उजाले,
जिसको पढ़कर जिंदगी सजाले।

सफर गजब की ये कराते,
घर बैठे दुनिया का हाल बताते।

क्या भविष्य में घट चुका बताते,
क्या करे जो जिंदगी उड़ान भर जाते।

हर एक बात है हमें बताते,
जीवन में प्रेरणा शक्ति भर जाते।

ना मन लगे तो पढ़ो कोई पुस्तक,
सिर्फ ज्ञान ज्योति की होती दस्तक।

चमक उठे हो प्रकाशमान मस्तक,
हुए ज्ञानवान जो भी पढ़े पुस्तक।


- राघवेन्द्र प्रकाश 'रघु'


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नम आंख

नम आंखों का हर अश्क कहता एक कहानी
बुढ़ापा सबको आएगा नहीं रहेगी जवानी
क्यों आदमी फिर भी जकड़ा है मैं ने
पड़ेगी जिंदगी फिर ऐसे ही बितानी

आंखों की नमी को है वही समझ सकता
शरीर में जिसके है नरम दिल बसता
दुनियां से उसे क्या है लेना
जिसे हर काम में पैसा है दिखता

किसी की आंख से जब बहता है पानी
जिंदगी है ऐसे जैसे दरिया की रवानी
खुद नहीं चलोगे तो थम सी जाएगी
जैसे कि तालाब में ठहरा हुआ पानी

जिंदगी उसके लिए मीठी है कहानी
बेमतलब बहाता नहीं जो आंख से पानी
दूसरों के काम जो न आ सके कभी
किस काम की वह जिंदगी किस काम की जवानी


- रवींद्र कुमार शर्मा


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मैं कविता लिखती हूँ

कोई कहता है,
कि मैं कविता लिखती हूं।
मगर नहीं !
मैं मन के भाव लिखती हूं,
मैं अपने ख्वाब लिखती हूं,
मैं कुछ गम लिखती हूं,
मैं कुछ हंसी-कुछ खुशी लिखती हूं,
कोई कहता है,
मैं कविता लिखती हूं,
मगर नहीं !
मैं मन के भाव लिखती हूं,
बीता बचपन लिखती हूं,
मिट्टी का पुराना घर लिखती हूं,
जिसमें खेला करते थे, और
वो मिट्टी की खुशबू लिखती हूं,
जो कहीं खो सी गई है आज
कोई कहता है,
मैं कविता लिखती हूं।
मगर नहीं !
मैं मन के भाव लिखती हूं।
मैं कोरे कागज पर,
अपने दिल का हाल लिखती हूं।


- सुनीता बिश्नोई


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सर्वदर्शी

किताबों के बाद
इंसानों को पढ़ने का
शौक पैदा हुआ,
इतना पढ़ा
कि वो भी पढ़ लिया
जो कभी
नहीं पढ़ना चाहिए था
उनके अंतर्मन का।

तुमको देखने के बाद
इंसानों को देखने का
शौक पैदा हुआ,
इतना देखा
कि वो भी देख लिया
जो वो
छुपाना चाहते थे
सदा दुनिया से।


- डॉ. राजीव डोगरा


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गौरैया

नन्ही सी...
प्यारी सी...,
मन को मोह लेने वाली गौरैया,
कितनी प्यारी लगती है।
जब सुबह-सुबह चहकती हुई,
रोज मुझे उठाती है,
छत पर आकर दाना चुगती
अपनी मीठी-मीठी
मधुर स्वरों से,
मेरे कानों को भर देती है
मेरे हृदय को छू जाती है।


- पूनम बिश्नोई


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नई ज़िन्दगी

मैं हर रोज़ देखता हूँ
अपने ख्वाब में तुम्हें;
तुम्हारा मेरे कंधे पर
सिर रखना, याद है…
वो हमारा, एक दूसरे को
समय देना, याद है…
जब खिलाती थीं मुझे
अपने हाथों से खाना
याद है…

हम चले जाते थे, एक
नई दुनिया में
जीने लगते थे, एक
नई ज़िन्दगी, पर;
ख्वाब से निकलकर जब
वास्तविकता मुझे गले
लगाती, तो लगने लगती
ये ज़िन्दगी भी उदासीन।


- सुभाष 'अथर्व'


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