4 वर्ष की आयु से एक विद्यार्थी के रूप में मेरे जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ, जब शुरू में तख्ती पर कलम और काली स्याही से लिखना, यही पढ़ाई में था। जब तीसरी कक्षा में पहुंचे तो पुस्तकों का दौर शुरू हुआ। शुरू में पुस्तकें अच्छी नहीं लगती थी लेकिन पता ही नहीं लगा, कब इन पुस्तकों से लगाव हो गया। घर में शुरू से ही पढ़ाई के लिए अच्छा माहौल था।
पिताजी शिक्षक थे, वे पढ़ाई का महत्व जानते थे, इसलिए हमेशा पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे। साथ में अच्छी बात यह हुई कि मेरी रुचि शुरू से ही पुस्तकों में हो गई। सभी विषयों में मन लगाकर पढ़ता था और अंक भी अच्छे आते थे।
स्कूल में खाली समय में पुस्तकालय जाकर भी पढ़ता था। ऐसा नहीं था कि मैं बहुत ज्यादा पढ़ता था, लेकिन जब भी पढ़ता था तो पूर्ण रुचि और ध्यान से पढ़ता था। स्कूल से निकलने के बाद पाठ्य पुस्तकों के बजाय अतिरिक्त पुस्तकों में मेरी रुचि बढ़ गई।
कोई भी प्रतिस्पर्धा जो ज्ञान से संबंधित होती थी, उसके लिए मन लगाकर अध्ययन करता था और उसमें अवश्य भाग लेता था। समय के साथ पुस्तकों से लगाव बढ़ता ही गया, उसी का परिणाम है कि आज एक सरकारी शिक्षक के रूप में समाज को कुछ देने में समर्थ हूँ और साथ में अपने शौक के लिए कविता लेखन और लेख लेखन भी करने में सफल हुआ हूँ। मैं आज शिक्षक होते हुए भी अपनी शिक्षा में अग्रसर हूँ क्योंकि पुस्तकों से प्रेम और कुछ नया जानने की इच्छा ह्रदय में सदैव रहती है।
- प्रवीण कुमार
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