भारत की संस्कृति में जाति व्यवस्था का गहरा असर दिखाई देता है। इसी जाति व्यवस्था में धातु से शस्त्र बनाने वाली जाति का नाम लोहार या लुहार जाति है। जमीन से धातु निकालना और धातु को आग की भट्टी में गरम कर पीट-पीट कर आकर देना लोहार जाति का हुनर है। इस जाति का इतिहास उतना ही पुराना है, जितनी पुरानी मानव सभ्यता और संस्कृति है। आदिमानव काल में मानव ने पत्थर के औजारों के बाद तांबे और लोहे के औजार बनाने शुरू किए। उस काल में लोहार जाति के गुण सभी जाति और धर्म के लोगों में रहे होंगे।
धीरे-धीरे सभ्यता के विकास के साथ-साथ यह गुण कुछ लोगों तक सीमित होता गया और उन लोगों को लोहार जाति का नाम दे दिया गया। इतना ही नहीं बल्कि हिंदू धर्म शास्त्रों में हर श्रमिक को शूद्र यानी अछूत कहा गया है। खैर छोड़िए! मैंने यह इसलिए बताया क्योंकि श्रमिक वर्ग को विश्व की लगभग हर संस्कृति और सभ्यता में नीच ही बताया गया है। श्रम करने वाला नीच कैसे हो सकता है यह सवाल मुझे हमेशा परेशान करता है।
लोहार जाति भारत सहित बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, म्यांमार और श्रीलंका आदि देशों में अलग-अलग नाम और समुदाय से पहचानी जाती है। वर्तमान में इस जाति का काम धीरे-धीरे आधुनिक मशीनों पर कंपनियों ने ले लिया है। भारत में आज लगभग सभी समुदाय और धर्म के लोग इस जाति का पेशा आधुनिक रूप से अपनाएं हुए हैं।
जिसमें आयरन वर्कर, स्ट्रक्चरल आयरन और स्टील वर्कर, मेटल फैब्रिकेटर, वेल्डर, मैकेनिकल इंजीनियर और मशीनिस्ट आदि शामिल हैं। आजादी के बाद भारत में लोहार जाति राज्य के अनुसार एससी-एसटी, ओबीसी वर्ग में आती है।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता में लोहार जाति का उतना ही महत्वपूर्ण योगदान है, जितना अन्य सभी समुदायों और जातियों का रहा है। बल्कि इस समुदाय ने राजा-महाराजाओं को युद्ध जीतने और महल, मंदिर आदि निर्माण में जो योगदान और भूमिका निभाई है, शायद ही किसी अन्य वर्ग ने निभाई होगी। राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में यह समुदाय सड़क किनारे आज भी लोहे के औजार, बर्तन बनाते दिखाई देते हैं।
- दीपक कोहली



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