साहित्य चक्र

13 November 2025

पत्रकारों की चुनावी बाढ़!


सोशल मीडिया के इस दौर में पत्रकारों की बाढ़ सी आ गई है। हर दूसरा व्यक्ति पत्रकार बनने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि उसके हाथ में कैमरा वाला फोन है। हर चीज की वीडियो बनाने की लत लोगों में लगातार फैलती जा रही है। यह लत समाज के लिए जितनी बेहतर है, उतनी ही खतरनाक भी है।

पत्रकार होना बहुत कठिन है, सिर्फ माइक, कैमरा उठा लेने से कोई पत्रकार नहीं बन सकता है। पत्रकारिता की कई सीमाएं होती हैं, मगर आजकल हर व्यक्ति अपनी विचारधारा के अनुसार चीजों को दिखाने की कोशिश कर रहा है। मेरा खुद का मानना है कि जिन लोगों ने पत्रकारिता की पढ़ाई की है, अगर वही लोग पत्रकारिता करेंगे तो हमारे देश के लिए बेहतर रहेगा।




एक और बात जो मैंने महसूस की है कि जैसे ही किसी राज्य में चुनाव आते हैं तो उस राज्य में पत्रकारों की बाढ़ सी आ जाती है। इतना ही नहीं बल्कि देश भर के पत्रकार उसी राज्य में दिखाई देते हैं। चुनाव के बाद तथाकथित पत्रकार राजनेताओं को उनके वायदे याद क्यों नहीं दिलाते हैं ?

और उस राज्य में फिर 5 साल बाद ही क्यों आते हैं ? हम सभी को यह समझने की जरूरत है कि पत्रकार चुनाव के दौरान आपके और हमारे क्षेत्र में इसलिए आते हैं क्योंकि उन्हें राजनीतिक पार्टियों के माध्यम से अच्छा खासा पैसा मिल जाता है।

आज पत्रकारिता का प्रभाव जनता के बीच लगातार कम होता जा रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल पहुंच गया है और गूगल के माध्यम से व्यक्ति अपने क्षेत्र या देश दुनिया के बारे में आराम से सर्च कर सकता है। मैं तो कभी-कभी अचंभा में पड़ जाता हूं कि इन यूट्यूबर्स पत्रकार के पास इतना पैसा कहां से आता है कि ये हर राज्य के चुनाव को कवर करने के लिए चले जाते हैं!

और उनके पास कोई अच्छे खासे विज्ञापन भी नहीं होते हैं। हम सभी को पत्रकारों की इस चुनावी बाढ़ के बारे में सोचना होगा और पत्रकारिता को जिंदा रखने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।


- दीपक कोहली


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