साहित्य चक्र

22 November 2025

पुस्तकों से रिश्ता


जब मैं करीब चार वर्ष का हुआ होऊंगा, तभी से जाने अनजाने, पुस्तकों के सानिध्य में रहा हूं, पुस्तकें न केवल ज्ञान का स्रोत हैं, बल्कि पुस्तकों में मानव और समाज को गढ़ने की क्षमता भी है।

ज्ञान, कला आदि विषयों का ज्ञान प्राप्त होता है, ये केवल ज्ञान ही नहीं बल्कि विश्व भर के अनेक साहित्यों से परिचय भी कराती है। जिससे कि हम समकालीन समाज के सभी पहलू से जुड़ जाते हैं। ये मनोरंजन के साथ साथ सामाजिक चेतना को भी जागृत करती है।





मुझे याद है, प्राइमरी स्कूलों में हम सब सिलेब्स की किताबों के अलावा कॉमिक्स, जनरल नॉलेज तथा बाल साहित्य जैसे चंदा मामा, कादम्बिनी, सिंड्रेला की कहानी, अकबर-बीरबल, बिक्रम-बेताल, आदि दर्जनों पुस्तकों को पढ़ते थे।

सभी पुस्तक खरीद पाना संभव न था, इसलिए कभी लाइब्रेरी से, कभी दोस्तों से, कभी सेकंड हैंड बाजार से लेकर किस्से कहानियों का आनन्द लेते थे। फिर किशोरावस्था के समय में चुपके से आपने मामा की अलमारी से अनेकों उपन्यास भी पढ़ डाले, जो रोमांच से हमे भर देता, जिनमें ओशो के क्रांतिकारी पत्रिका भी होती।

फिर जैसे-जैसे बड़ा हुआ, रेलवे स्टेशन पर, बस अड्डों पर बिना पुस्तकें खरीदे मेरी यात्रा अधूरी-सी लगती। कॉलेज के दिनों में मेरे एक सीनियर जो कि मुझे भाई समान मानते थे उन्होंने मेरे अंदर आध्यात्मिक तृष्णा को महसूस किया और अनेकों पुस्तक रामकृष्ण परमहंस, योग तथा स्वामी विवेकानंद की पुस्तकें ला कर दी।

अब प्रौढ़ अवस्था आ चुकी है, समय भी नहीं मिल पाता। लेकिन प्रति वर्ष एक बार जमशेदपुर पुस्तक मेला, जरूर जाता हु, कुछ खरीदता हूं,कुछ को निहारता हूं, कुछ के पन्ने पलट लेता हूं। और फिर आपने आप को तृप्त करते हुए, अगले पुस्तक मेला की उम्मीद लिए घर लौट आता हूं।


- रोशन कुमार झा


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