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चौपाल
आज चौपालों पर भले ही वो पुरानी रौनक बहार न हो,
पर आज भी कुछ झुरियां लिए चेहरे चौपाल पर आते हैं।
सजाते थे जो महफिलें इस चौपाल पर हर शाम को,
उनके किस्से अब कुछ बुजुर्ग भरे दिल से सबको सुनाते हैं।
इस आज के दौर ने भले ही दायरा तंग कर दिया है सोच का,
पर आज भी इन बुजुर्गों के कांपते होंठ सबका भला मांगते हैं।
खुद तक ही स्वार्थी हो गई है आज की ये पढ़ी लिखी पीढ़ी,
इक दूसरे की मदद करने अब भी ये कांपते हाथ आगे आते हैं।
भले ही आज कितने ही जोश और होश की बातें कर लें हम,
ये अनुभव बांटने अगली पीढ़ी को रोज चौपाल पर आते हैं।
हमारा कल हैं ये झुके कंधे और झुरियां लिए चेहरे,
हुनर वक्त संग चलने का हमें रोज ये सिखाने आते हैं।
- राज कुमार कौंडल
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बीघा गजल
हर वक्त रिश्तों में इम्तिहान दिए है
जहां नहीं देना था,वहां जान दिए हैं
जो परिंदे उड़ रहे है पर फैला कर
किस्तों किस्तों में आसमान दिए है
जहां जहां बिजलियों का तांडव था
वहां पर छिपने का मकान दिए है
पानी को जहां रोक रखा था पहाड़ों ने
संग का छाती चीर कर निशान दिए है
वक्त ने जब गूंगा बनाया था कभी
हमने मुंह में बोलने का जबान दिए है
जो घायल हिरन भटक रहे हैं दश्त में
उसे हमने ही तीर और कमान दिए है
जिसे भी दिल के जागीर में रखा था
वो लोग तोहफे में कब्रिस्तान दिए है
- सदानंद गाजीपुरी
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बाजार
ये बाजार है साहब,
यहां हर चीज की कीमत है।
अगर पास हो कीमत ,
तो हर चीज
समझो अपनी।
और अगर,सिर्फ थैली रक्खे,
तो समझ लेना,
तेरी ख्वाइशों की कीमत,
सिर्फ तुम हो।
ज़ख्म हैं,तो सिलेंगे नहीं,
मरहम लगाने वाले मिलेंगे नहीं।
नमक तो फिर भी,मिल ही जाएगा।
दो वक्त की रोटी को मासूम
तरसेंगे।
जो पास कीमत है,मिलकर रहेगा,
मलाई और मिठाई ,जो बने है चांदी के वर्क से।
फूटी कौड़ी नहीं पास तेरे,
तो जिन्दगी होगी बदतर यहां,
कम नहीं किसी नर्क से।
रिश्तों नातों की फेहरिस्त होगी लंबी ,
सभी पल में दोस्त और भाई बन
जाएंगे।
गरीबी से रखोगे रिश्ता,पराए क्या,
अपने भी दूर से कन्नी,
काट जायेंगे।
अमीरी का दिखता नहीं , कोई ऐब,
ढक जाती है सोने की बदरी से।
बदनसीब हो तुम कैसे बचाओगे,
खुद को, मुसीबतों की बारिश से,
होगी पास तेरे , टूटी हुई वही
पुरानी छतरी ..जो लगे तुम्हे,
अपनी वारिस से....।
इसी लिए दुनियां कहती है,
गरीब पैदा होना मना नहीं है,
गरीबी में मरना गुनाह है।
फिर तो करो समझौते,
आपने वसूलों से,स्वाभिमान,
और आपने ईमान से।
फिर बाजार जा कर देखो,
बाजार होगा,सिर्फ तुम्हारा,
कीमत अदा तू भी कर
पाओगे बड़े गुमान से।
- रोशन कुमार झा
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स्त्री
ओ पत्नी है,
प्यार और समय चाहती है।
ओ बहन है,
बस दुलार चाहती है।
ओ बेटी है,
लाड पुचकार चाहती है।
ओ माँ है,
बस सम्मान चाहती है।
ओ चाची है,
साथ सहयोग चाहती है।
ओ भाभी है,
बस अपनापन चाहती है।
ओ बुआ है,
मीठी जुबान चाहती है।
ओ मासी है,
बस मान चाहती है।
ओ प्रेयसी है,
प्रोत्साहन और प्रशंसा चाहती है।
ओ मामी है,
बस स्नेह चाहती है।
ओ दादी है,
प्यारी मुस्कान चाहती है।
धन, दौलत, पैसा, रुपया
सब एक तरफ़..
ओ स्त्री है,
बस इज्जत चाहती है...
बस इज्जत चाहती है...
- राघवेंद्र प्रकाश 'रघु'
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कवि को क्या चाहिए ?
ज़रा आप ही बताइए,
कल्पनाओं के भंवर में
गहरा गोता लगाइए,
निकलेंगे अक्षर रूपी
बेशकीमती बहुमूल्य रत्न,
पढ़कर इनका जायका
ज़रा आप भी लीजिए,
कवि को क्या चाहिए ?
ज़रा आप ही बताईए...
लेखनी, कलम, दवात
ये अस्त्र हैं एक कवि के,
उकेरता है कागज़ पर
मन से निकलने वाले भावों को,
शब्दबद्ध ये भाव कितना
प्रफुल्लित करते हैं पाठक को ?
ताकत इनकी आप ही बताईए,
कवि को क्या चाहिए ?
ज़रा आप ही बताइए...
आनंदित पाठक की खुशी देखकर
फूल कर कितना कूपा हो जाते है कवि ?
अंदाज़ा इसका लगाना मुश्किल हो जाता है
खुशी से झूमता पाठक रसाबोर जब होता है
खिल उठता है हृदय उसका और
कह उठता है, वाह वाह क्या बात है ?
पलकें झुका कर आदाब कीजिए
कवि को क्या चाहिए ?
ज़रा आप ही बताइए...
- बाबू राम धीमान
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अमृत की बूंदें
ये केवल औंस की बूंदें नहीं, अमृत की फुहारें हैं,
जो धरती की गोद में गिरकर, नवजीवन की कथाएँ हैं।
जब फूलों पर ये झरती हैं, खुशबू बिखर जाती है,
हर पत्ती मुस्कराती है, हर कली निखर जाती है।
सूखी मिट्टी तक में ये उम्मीद जगा देती हैं,
थकी धरती को फिर से, हरियाली बना देती हैं।
ये बरसात नहीं, प्रभु का प्रेम-संदेश हैं,
जो हर दिल को छूकर कहता- “जीवन अब भी विशेष है।”
- रजनी उपाध्याय
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बार-ए-ग़म उठाकर भी चेहरे पर मैं मुस्कान रखती हूँ,
झुकी पलकों में अपने टूटे ख़्वाबों का हिसाब रखती हूँ।
जहर के घूंट पीने की कुछ यूँ आदत सी हो गई है,
कि अपने आस्तिन में ही एक-दो सांप पाल रखती हूँ।
अफ़रोख़्तगी में भी लहजा अपना संभाल रखती हूँ,
अना से बढ़कर रिश्तें में मैं एहतराम पसंद रखती हूँ।
सरे-महफ़िल कहीं रूसवा ना हो जाए कोई मोहब्बत,
नज़्मों में अपने लफ़्जों को कुछ यूँ मैं पाबंद रखती हूँ।
आधी उम्र गुज़र गई रेज़ा-रेज़ा दिल को संभालने में,
कर बैठे न फिर इश्क़, दिल की दिवारे बुलंद रखती हूँ।
उसकी यादों को गोशा-ए-दिल में सहेजकर रखती हूँ,
आज भी उसकी तस्वीर सिरहाने के दराज में रखती हूँ।
देखा है कि अंधेरों में तो साया भी साथ छोड़ जाता है,
कि अब लड़खड़ाकर ख़ुद संभलने पर यकीन रखती हूँ।
नक़ाबपोश चेहरों को पढ़ने का हुनर अब मैं रखती हूँ,
रक़ीबों को करीब, तो हरीफ़ों को और पास मैं रखती हूँ।
चाहे तो तु कुछ और आज़मा लेना मुझे ए जिंन्दगी,
तेरी हर आजमाइश से गुज़रने का मैं हौसला रखती हूँ।
कभी ना कभी तो ख़त्म होगा यह गर्दिशों का सिलसिला,
अपने राक़िम, अपने खुदा पर इतना मैं ईमान रखती हूँ।
- नाज़िया शेख
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मेरे सपनों का संसार
मेरे सपनों का संसार, एक सुंदर चित्र है
जहाँ प्यार और शांति का वास है
हर कोई खुश है, हर कोई मुक्त है
मेरे सपनों का संसार, एक सुंदर चित्र है
जहाँ न कोई भेदभाव है, न कोई द्वेष
हर कोई एक दूसरे के साथ है
मेरे सपनों का संसार, एक सुंदर चित्र है
जहाँ शिक्षा और ज्ञान का प्रकाश है
हर कोई आगे बढ़ रहा है, हर कोई सफल है
मेरे सपनों का संसार, एक सुंदर चित्र है
जहाँ प्रकृति की सुंदरता है, जहाँ जीवन की खुशी है
हर कोई अपने सपनों को पूरा कर रहा है
मेरे सपनों का संसार, एक सुंदर चित्र है
यह संसार प्रेम और सद्भाव से भरा है
जहाँ हर कोई एक दूसरे के लिए जीता है
यह संसार ज्ञान और विज्ञान का प्रतीक है
जहाँ हर कोई अपने लक्ष्यों को प्राप्त करता है
मेरे सपनों का संसार, एक सुंदर चित्र है
जहाँ हर कोई खुश है, हर कोई मुक्त है
यह संसार एक सुंदर भविष्य का निर्माण करता है
जहाँ हर कोई अपने सपनों को पूरा करता है
- अर्जुन कोहली
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मेरी कविता
मेरे भावों की अभिव्यक्ति हो,
मेरा आत्मविश्वास और शक्ति हो।
मेरे कर्म– पूजा में प्रणिता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
तुम आशा हो किनारों सी,
एक लहर सी हो विचारों की।
घोर तम में जैसे सविता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
गूंथे हुए फूलों की माला हो,
मेरे जीवन का उजाला हो।
मैं चाहूं जिसे वो अनिता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
मेरे अनुभवों की शिक्षा हो,
मेरे गुरुओं की दीक्षा हो।
जैसे संस्कारों में नमिता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
तुम हो एक बहती जलधारा ,
एक जयघोष एक जयकारा ।
कभी न सूखे वो सरिता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
मेरे प्रेम की प्रतिमा हो,
मेरे लक्ष्य में अंतिमा हो ।
अपराजिता हो रंजीता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
मेरे भावों की अभिव्यक्ति हो,
मेरा आत्मविश्वास और शक्ति हो।
मेरे कर्म– पूजा में प्रणिता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
तुम आशा हो किनारों सी,
एक लहर सी हो विचारों की।
घोर तम में जैसे सविता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
गूंथे हुए फूलों की माला हो,
मेरे जीवन का उजाला हो।
मैं चाहूं जिसे वो अनिता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
मेरे अनुभवों की शिक्षा हो,
मेरे गुरुओं की दीक्षा हो।
जैसे संस्कारों में नमिता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
तुम हो एक बहती जलधारा ,
एक जयघोष एक जयकारा ।
कभी न सूखे वो सरिता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
मेरे प्रेम की प्रतिमा हो,
मेरे लक्ष्य में अंतिमा हो ।
अपराजिता हो रंजीता हो,
हां हां तुम मेरी कविता हो।
- अशोक कुमार शर्मा
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