साहित्य चक्र

21 January 2024

कविताः मौत का सौदागर





जवानी को कर रहा खोखला
स्कूल कालेज सब जकड़े इसने
गांव अछूते नहीं रहे अब
गली मोहल्ले भी पकड़े इसने

माता पिता में बड़ी लाचारी
कैसे होगी यह दूर बीमारी
दीमक लगी हुई है सारे
बर्बाद कर दिए युवा हमारे

नशा बडे किया करते थे पहले
अब बच्चे भी इसके लिए लड़ रहे हैं
खाने को बेशक कुछ न मिले
चिट्टा खाने के लिए मर रहे हैं

जिम्मेवारी से अपनी हम सब
दूर दूर क्यों भाग रहे है सारे
कहां गए वो संयुक्त परिवार
कहाँ गए संस्कार हमारे

पैसे के लालच में हम सब
नशे में इनको झोंक रहे
अपने ही बच्चों की पीठ में
खंजर क्यों हम भोंक रहे

जहां भी देखो अजब तमाशा
रोज़ दिखाया जाता है
कहीं भागता फिरता छुपता
चिट्टे में पकड़ा जाता है

मेरे देश में पैसे के लिए क्यों
आदमी इतना नीचे गिरता है
युवा चिट्टे की तलाश में
क्यों मारा मारा फिरता है

मौत का सौदागर बन कर
घूम रहा है इधर उधर
बस्ती बस्ती नुक्कड़ नुक्कड़
बच कर जाएं कहाँ किधर


                                           - रवींद्र कुमार शर्मा



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