आज हम सब अपने देश का 73वां गणतंत्र दिवस माना रहे है.मगर क्या वाकई गण के मन के मुताबिक फैसले लिए जा रहे हैं. अगर अपने देश के तंत्र का मुआयना करें तो पता चल जाएगा कि यहां नेताओं का तंत्र मजबूत हुआ है. क्या हमनें कभी सोचा हैं कि भारत एक गणतंत्र देश क्यों है और इसकी जरूरत देश को क्यों रही। चलिए जानते हैं. कि आज ही के दिन 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ. जिसका मतलब है कि हमने ऐसे लोकतांत्रिक शासन को अपनाया. "जिसको जनता चुने, जनता के द्वारा शासन किया जाए"
गणतंत्र का सीधा मतलब है गण का तंत्र, यानि आम जनता का सिस्टम। इस गणतंत्र के मायने हैं देश में रहने वाले लोगों की सर्वोच्च शक्ति और सही दिशा में देश के नेतृत्व के लिये राजनीतिक नेता के रुप में अपने प्रतिनिधि चुनने के लिये सिर्फ जनता के पास अधिकार है. इसलिये भारत एक गणतंत्र देश है. ये किसी शासक की कोई निजी संपत्ति नहीं होती है. इसमें राष्ट्र का मुखिया वंशानुगत नहीं होता है. सीधे तौर पर या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित या नियुक्त किया जाता है. और मुखिया ऐसा हो जो जनता के सुख- दुख को समझते हुए देश की कमान संभाल सके. इसलिए भारत एक गणतंत्र देश है. आधुनिक अर्थों में गणतंत्र का मतलब सरकार के उस रूप से है जहां राष्ट्र का मुखिया राजा नहीं होता है.
मगर यह भी कड़वी सच्चाई है कि हमारे देश का सैद्धांतिक रूप से तैयार संविधान आज तक व्यावहारिक रूप में पूरे तरीके से कामयाब नहीं हो पाया है . हमारा यहां दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है. हमारे संविधान में देश के हर नागरिक को अपने अधिकार दिए गये हैं. जिसकी बदौलत हर नागरिक पूरी आजादी के साथ अपनी जिंदगी जी सकता है. लेकिन फिर भी आज ये हमें शर्म से कहना पड़ रहा है कि कुछ लोगों के पास सारे अधिकार होते हुए भी उन अधिकारों से जीवन जीने का अधिकार नहीं है. देश में अभी भी अपराध, भष्टाचार, हिंसा, आंतकवाद, जैसी चीज़ों के सामने आम नागरिक घुटने टेक देता है. शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी तक बिकने लगा. खनिज संसाधनों की लूट मारी की गई. भूखी जनता का पेट भरने का नारा दिया. लोकतंत्र की ताकत गरीबी में समाई है।
भले ही इनसे लड़ने की कोशिश जारी है लेकिन अभी भी हम कामयाबी से कोसो दूर हैं. हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष की बात पर जोर देते हुए एक समानता की बात करते हुए एक ऐसे समाज के निर्माण की बात करता है जिसमें सब समान हों, सब को अपना अपना हक मिले लेकिन वहीं हमारा देश आए दिन रोज नए मजहबी दंगों में जलता और सुलगता रहता है. आज भी भूख गरीबी से हमारे अपने तड़पते बिलखते. हमें सड़कों पर मिल जाएंगे. आज भी फुटपाथ पर गरीब जनता के तौर पर गणतंत्र ठिठुरता मिल जाएगा. महिलाएं देश के दिल दिल्ली तक में सुरक्षित नहीं है. दलितों को आज भी जिंदा जला दिया जाता है. दीमक की तरह इस सिस्टम को खा रहे भ्रष्ट अधिकारियों का सिस्टम बन कर रह गया है।
हम जानते है कि वोट भीडतंत्र से तो मिल सकता है लेकिन लोकतंत्र से नहीं . हमारे सिस्टम में लगातार सुधार की गुंजाइश है. एक आंदोलन की जरूरत है. जागरूक समाज की जरूरत है. मजहब जाति से ऊपर उठकर देश की बात करने की जरूरत है, गरीब, वंचितों के बारे में सोचने की जरूरत है . हिंदुस्तान में असल गणतंत्र तभी हो पाएगा जब हर नागरिक अपना कर्त्तव्य निभाएगा, सरकारें,शासन, प्रशासन जनता के सेवक जनता के बारे में सोचेंगे तभी हम लोग सिर उठाकर गर्व से कह पाएंगे और स्वयं को गणतंत्र घोषित कर सकेंगे। लेकिन देश का गणतांत्रिक इतिहास हमें हमेशा इस पर गर्व करने का मौका और उद्देश्य देता है. उम्मीद करते हैं आने वाले सालों में देश इन समस्याओं से लड़ वास्तविक “गणतंत्र” कहलाने के योग्य बनेगा.अंत में सिर्फ इतना ही कि चलो, इस गणतंत्र दिवस पर एक स्वप्न देखे: एक राष्ट्र, एक उद्देश्य और एक पहचान बनाए।
- डॉ. सारिका ठाकुर “जागृति”
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