आओ... नए साल पर कुछ हिसाब -किताब कर ले ।
जिंदगी ने लम्हा -लम्हा कितना घटाव दिया।
उस सब का जोड़ कर ले ।
जो दर्द कई गुना बढ़ते ही गए।
आओ... चंद उम्मीदों से उन्हें भाग कर ले ।।
आओ नए साल पर कुछ हिसाब -किताब कर ले ।
जिंदगी बड़ी तेजी से निकल जाती है ।
जबकि लगता है यह गुजराती ही नहीं है।
इसी बात पर फिर से वहीं बात कर ले।
घूम -घाम कर, फिर से उसी घेरे में घूमती है जिंदगी।
हम खड़े किसी त्रिकोण में जिंदगी को,
फिर से नई उम्मीद से वर्गाकार कर ले ।
आओ नए साल पर कुछ हिसाब -किताब कर ले ।
जो लोग....कहते है।
यह करेंगे... वह करेंगे रेजोल्यूशन तो एक भुलावा है ।
जबकि हम भी जानते हैं ।
पिछले बीते हुए तमाम सालों में कौन -सा खंबा उखाड़ डाला है।
आओ फिर भी ...फिर से एक नई उम्मीद कर ले ।
आओ नए साल पर कुछ हिसाब -किताब कर ले ।
पिछले सालों की बजाय इस साल कुछ नया होगा।
इसी बात पर पुराने साल को नए साल के स्वागत में विलय कर ले।
जमा-घटाव तो चलते ही रहेंगे।
अपनी हिम्मत से हर हार को जीत में बदलने का ऐलान कर ले।
- प्रीति शर्मा 'असीम'
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