दस्तक देना बेकार है ,
वो खाली सा दिखता है ।
यादें पड़ी हर कोने मे ,
दिल भरा सा लगता है ।
जिस्म उस मकान सा ,
साँसें है किराया ।
कागज़ मेरे नाम के ,
फिर भी मै पराया ।
जा खोल दरवाजा
क्यूँ चौखट पे तू खड़ा ।
मिल लेना खुद को ,
जहां से तू हुआ था बड़ा ।
दस्तक नही ,
वो मन की पुकार है ।
तुझको शायद ,
खुद का ही इंतजार है ।
- मैथिली रमेश
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