साहित्य चक्र

03 January 2024

कविताः इंतजार



दस्तक देना बेकार है ,
वो खाली सा दिखता है ।

यादें पड़ी हर कोने मे ,
दिल भरा सा लगता है ।

जिस्म उस मकान सा ,
साँसें है किराया ।

कागज़ मेरे नाम के ,
फिर भी मै पराया ।

जा खोल दरवाजा
क्यूँ चौखट पे तू खड़ा ।

मिल लेना खुद को ,
जहां से तू हुआ था बड़ा ।

दस्तक नही ,
वो मन की पुकार है ।

तुझको शायद ,
खुद का ही इंतजार है ।


                                      - मैथिली रमेश


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