जिंदगी में कब से उलझी हुई हूं,
जिंदगी का सफर यूं चलती रही हूं।
बड़े शौक से में मुस्कुराती रही हूं,
चमन में कही फूल खिलाती रही हूं।
महफिल सजी है गीत गाती रही हूं ,
लोगों को तेरी हर बात बतती रही हूं।
नजर से इशारा तुझे करती रही हूं,
बडी शोखियों में तुम्हें बसा के रखी हूं।
तेरी बात उल्फत में महसूस करती रही हूं,
प्यार से शबनम कहकर बुलाती रही हूं।
बड़े राज गहरे तुम्हारे छिपा कर रखे हूं,
तुम कह दो तो हंसकर बयां करने लगी हूं।
हर कहानी रमा तेरी जुबा कह रही हूं,,
सबसे मिलकर में नदी की तरह बह रही हूं।
- रामदेवी करौठिया
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