क्या जादू मां के हाथों में
जिसको छू ले स्वाद अपरंपार
पता नहीं कैसी जादूगरनी ?
होता हर सवाल का जवाब
इतना दर्द ,तकलीफ सहकर भी
कैसे हंस लेती ?
खोकर सुख-चैन हंसा देती
कैसे करती है ये जादू तू
खाने से उठ जाती नींद से उठ जाती
गिले बिस्तर पर सो जाती
दिन भर करके काम बिना थके
करके काम कैसे खेले लेती संग मेरे
कभी-कभी सोचती हूं बन पाऊंगी मां जैसी
कभी-कभी चल भी नहीं पाती
उठने में दे देते घुटने जवाब
फिर भी बना देते पसंद का खाना
मैं समझ ना पाती हूं मां को
सोचती हर बार हूं समझ गई
फिर फिर कर देती अचंभित
मेरे बच्चे भाई के बच्चों को हंसा लेती
उम्र के इस पड़ाव पर करती पहरेदारी
आज भी हमारी बीमारी में
रात भर जग जाती
पता नहीं कैसे कर लेती है मां
लगाती जब भी सीने से मुझे
भूल जाती सारे गम सीमा
तनहाई में हो अगर
देख तुझे खुश हो जाती हूं।
- सीमा रंगा इन्द्रा
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