साहित्य चक्र

12 July 2023

कविताः काश मैं मोबाइल होता

                                         


मुझसे ही सब लाड़ करते,
औलाद से ज़्यादा प्यार करते,
मेरे बिना एक पल ना रहते
कितनी मेरी देखभाल करते,
तकिये के पास सुकून से सोता,
काश मैं भी मोबाइल होता।

लोग मुझको ख़ूब सजाते,
टेम्पर्ड वाला ग्लास लगाते,
सर्दी-गर्मी ना लग जाये कहीं
बढ़िया-बढ़िया कवर चढ़ाते,
तन्हा होकर यूँ कभी ना रोता,
इससे अच्छा मैं मोबाइल होता।


मेरी ही सब चिंता करते,
खो ना जायूँ, इस बात से डरते,
रहूँ ना ज़रा भी भूखा कभी
समय पर मुझे रिचार्ज करते,
जीवन भर खुशियों के बीज बोता,
इंसान नहीं अगर मोबाइल होता।

ख़ुद से अधिक मुझको चाहते,
यादगार क्षण मुझमें समाते,
हाथों में अपने हमेशा रखते
सभी जगह मुझे ले जाते,
जैसे हो कोई बेटा इकलौता
हे भगवान, काश मैं मोबाइल होता।

- आनन्द कुमार


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