साहित्य चक्र

24 July 2023

कविता का शीर्षकः औरत



भट्टी में सिकती हुई रोटियां
रोटियां कहूं या औरतें
जो जल रही हैं
तुम्हारे जलाए जाने पर
कोयले की राफ सरीखी 
तुम्हारी जहरीली बातें
जो कोमल सी 
रोटी की तरह 
औरत को खूब
जला रही हैं
रोटियां और औरतें
तुम्हारे लिए एक समान हैं
जो मिटा सके तुम्हारी भूख
तुम्हें हर दिन
रोटी की तरह 
औरत चाहिए
जिसे तुम रोज़
भट्टी की आंच में डालकर
सेंक कर और जला कर
खुद को तृप्त कर सको। 

                              - भावना पांडे


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