साहित्य चक्र

12 July 2023

कविताः मेरा वजूद


मै अपना वजूद खोज रहा हूं
ये कहां मिलेगा ? कैसे मिलेगा ?
कोई रास्ता ? कोई उपाय ? कोई मंत्र ?
मुझे कोई बताएगा
कोई ऋषि,कोई दार्शनिक,कोई वैज्ञानिक,
कोई ज्ञानी, कोई कवि, कोई लेखक किसी को मालूम हो तो बताओ
या कोई ऐसा हो जो सीधा ईश्वर से संपर्क रखता हो तो मुंह खोले
मै बेताब हूं जानने को कि आखिर मेरा वजूद कहां मिलेगा?
बुद्ध को मिला वृक्ष के नीचे,
उन्हें जिसने बतलाया उस व्यक्ति को ही कोई खोज लाओ
युशु को मिला गड़ेरियों के बीच,
उन गड़ेरियों का ही मुझे पता बताओ
गांधी को उनके अपमान में मिला,
मुझे भी उस शख्स से मिलवा कोई
अंबेडकर को किताबों ने राह दिखाई,
उन किताबों का मुझे नाम बताओ कोई
कलाम को विज्ञान में दिखा तो कोई विज्ञान सिखाओ मुझे
रावण को अहंकार में,कुंभकरण को निद्रा में,
राम को संयम में मिला
इन महापुरुषों को तो मिला ही मिला
और मिला नीरव, चोकसी, माल्या और मोदियो को भी
सब को मिल रहा है
बस मेरे वाले का ठिकाना नहीं
अरे कोई इसका रंग, रूप, आकार ही बता दो या बता दो
इस वजूद का वजन कितना होता है ? 
ग्राम में या टन में
क्या मुझ साधारण से उठ पाएगा इसका बोझ
क्या यह मिलेगा मुझे धर्मग्रंधो में, 
पुराणों में,वेदों में या किसी तिर्थायाल, देवालय, 
हिमालय या मदनालय में या किसी पंचुरन की दुकान में?
कहीं ऐसा तो नहीं किसी हवलदार ने मेरे वजूद को कैद कर लिया हो?
या किसी नारी के सम्मोह ने जकड़ लिया हो?
हे पंच तत्वों तुम ही कुछ कहो
हे वसुधा तुम ही कुछ कहो
सब के सब मौन क्यों हैं,क्या किसी को भी मालूम नहीं
मेरा वजूद कहां है?किस हाल में है?
जिंदा भी है या मेरे इंताजर में वो भी चल पड़ा यमलोक।

- धीरज 'प्रीतो'


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