साहित्य चक्र

24 July 2023

कविता- हे द्रौपती




हरण एक बार पुनः चीर
बिसात पर क्या थे युधिष्ठिर ? 
कटघरे में आज भी द्रोण भीष्म  
कौन ले रहा था निर्वस्त्र तस्वीर ?

आज भले बिसात पर,
दांव पर ना लगे नारियाँ।  
फिर भी यहां की द्रौपदी 
हर युग में देती कुर्बानियां।
हर वक्त झेलती यह पारियां।
 
कौरवों ने राजपाठ  के लिए 
शकुनि के संग किया  प्रपंच था 
पांडवों के निष्कासन के लिए 
रचा  एक षड्यंत्र था।
 
फिर भी अधर्मी कौरव 
युद्ध कला में दक्ष थे।
जो पीयूष पान कर हुए जवान
वो तुम्हारे लिए सिर्फ वक्ष थे।


उसी क्षण द्रौपदी ने 
केश  खोल लिया था प्रण 
ज्ञात था उसे की 
पांडव जीत जाएंगे रण।

पर आज इस द्रौपदी की 
केश  रक्त से धोए कौन 
उस वक्त भी सभी मौन थे 
आज भी मानवता हुई है गौण ?

अब सुन तू द्रौपदी 
अगर चीर का होगा हरण 
तो अपने ही भीतर 
जगाना होगा तुमको मोहन।


- सविता सिंह मीरा 

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