साहित्य चक्र

23 July 2023

कविताः मेघा आए




गरज गरज के मेघा आए
उमड़ घुमड़ के दौड़े दौड़े

जमकर बरसे रोज़ रोज़ ये
बिजली कौंधी गरज गरज कर

मेघा बरसे दिन रात जमके
पर्वत नदियां गांव शहर अब

पानी से डूबे घर बाग बगीचे
चिड़िया रोई ज़ार ज़ार खूब

पशुओं को रास न आई
बरखा रानी जमकर आई

बहा ले गई गांव मोहल्ले
खेत खलियान गौशाले डूबे

भयभीत पड़े है गांव गली अब
हाथ उठाके जन जन अब

प्रभु बंद करो अब ये सब
प्रभु हंसे पर लोग न समझे

विकास हुआ तो विनाश भी होगा
करनी किसकी भरनी किसकी


                                       - सुमन डोभाल काला



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