साहित्य चक्र

12 July 2023

बरसात के मौसम में चित्राधारित कविताएं

विभिन्न कलमकारों द्वारा नीचे दी गई 
फोटो पर सुंदर रचनाएं प्रस्तुत की गयी हैं -
 




नन्ही बूंदों में नन्हीं परी खिलखिलाती खेलूं में
पानी के साथ बहने को जी मेरा चाहे ललचाए 
बरसात की बूंदों में भीग जाऊं मैं सराबोर होके
रोज रोज भीगती रोज रोज मां की डांट से भी न डरूं
बारिश आने से पहले ही मन में भीगूं दौड़ दौड़ के .. 
          
      -सुमन डोभाल काला

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बरखा ,बरखा मैं क्या जानूं रे ,
जानू तो बस इतना ही ।
आई है बरखा तो नहा लूं रे ।।
इससे पहले मुझे टोके कोई
मैं जल्दी जल्दी डुबकी लगा लूं रे
ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा ।
जो मिला है , आज इसी में आनंद
मनाऊं रे ।
रिमझिम बरसात आई रे।
मैं छपक छपक कर नहा लूं रे ।।
भीगना है मुझे,बारिश में
छाता क्या होता है मैं न जानूं रे

- वीणा वर्धन

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बचपन की पहली फुहार

ये बचपन की पहली फुहार आती ना जिंदगी में बार बार!
झूम उठता मन का रोम रोम और खिल उठता तन का तार तार!!

वो सखियों के साथ पूरे दिन की मस्ती !
वो अनमोल कागज़ की कश्ती!!

वो भवरों का गुनगुनाना, वो चिड़ियों की चहचहाट।
वो गुड्डे गुड़ियों का खेल, वो मस्ती की सनसनाहट!!

हर छोटी छोटी खुशी से टिमटिमाती आंखे हैं!
बचपन की पहली बारिश की ये 
अनमोल बूंदे, मन को जिंदगी भर भाती हैं!!

- रजनी उपाध्यय

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सावन की बारिश में 
गाड़ी से जाती हुई 
हल्की हल्की भीगी हुई तुम
और तुम्हारी उड़ती हुई जुल्फें 
मुझे बहुत अच्छी लगती हैं
लेकिन जब मैं देखती हूं 
तुम्हारी आंखों को 
एक टीस उठती है
तुम्हारी शांत आंखें
जो अब भी 
भीगना चाहती हैं
सिर्फ बारिश के पानी से 
आंसुओं से नहीं।

- भावना पांडे


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जब बारिश का मौसम आता है,
मेरे मन को बहुत लुभाता है ‌।
नन्हे नन्हे कोमल हथेलियों पर,
जब बरखा की रिमझिम फुहारें पड़ती है।
मन में वो खुशी कुछ अलग उमंग सी भरती है।
मे नाचती हूं गाती हूं और मस्ती में झूमती हूं।
मिट्टी के में सुन्दर सुन्दर घर बनाती।
बड़े प्रेम से में खेल खेलती हूं।
धरती मां हरित होकर कितना सुन्दर दृश्य दिखाती है।
प्रकृति ने भी वस्त्र पहनें हरे भरे 
पेड़ पौधे हरियाली की चमक बिखेरते हैं।

- रामदेवी करौठिया

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नन्ही नन्ही बूँदे जब भी , नन्ही बच्ची  छू पाए ।
थिरक उठा तन मन अंतर से , लहरों सम वह बलखाए।
सावन की ऋतु है सुखदाई , शीतलता हरियाली दे,
बूँद हृदय के तार छेड़ दे , गीत मधुर मधु मन गाए ।।

चेहरे पर बस भाव सुखद है , दुख पीड़ा है बिसराए ।
खड़ी अकेली थिरक रही है , बूँदों से ही बतियाए ।
खुशियाँ कब दूजों से मिलती , खुद ही मन से पाओगे ,
सच्चा साथी बस मन अपना , यही बालिका समझाए ।।

- डॉ. मधु शंखधर 'स्वतंत्र'

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जबभी वारिश आती है ,
मन को बहुत लुभाती है।

झमझम झमझम वर्षा पानी,
फुदक नहाती बिटिया रानी।

मन में उठती एक उमंग,
खुशियां जब होतीं हैं संग।

चमचम चमचम चमके बिजली,
पर बिट्टो रहरह कर मचली।

तन मन को तर करती जाती,
फुदक फुदक कर खूब नहाती।

चित्र बहुत लगता है पावन,
वर्षा तो लगती मन भावन।


- राणा भूपेंद्र सिंह


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मिल जाये वो बचपन तो ढूंढ के लाना

बचपन चला गया  रोते रोते
जवानी चली गई ढोते ढोते
आ गया बुढापा 
अब क्या पछताना
मिल जाये वो बचपन
तो कोई ढूंढ के लाना
खेती में अब बैल भी नहीं
नहीं रह गए हल
पानी तो मिलता नही
घर घर लग गए नल
मुफ्त का सब को चाहिए खाना
मिल जाये वो बचपन
तो ढूंढ के लाना
यारी दोस्ती अब पुरानी बातें हो गई
वो प्यार मोहब्बत ना जाने कहाँ खो गई
रिश्ते नातों की डोर भी अब टूटने लगी है
मन में  द्वेष और ईर्ष्या अब फूटने लगी है
पुरानी बातों की अब याद मत दिलाना
मिल जाये वो बचपन
ज़माने की ऐसी हवा चली
सबका आशियाँ बिखर गया
हम तमाशा देखते रहे
और कारवां गुज़र गया
आता नहीं वापिस वो गुज़रा ज़माना
मिल जाये
सब हो गए हैं नतमस्तक
आपस में सब हो गए दूर
रंगत उड़ी हुई है सबकी
चेहरे पर अब नहीं वो नूर
सबकी मंजिल अब केवल पैसा कमाना
दूध की जहां बहती थी नदियां 
मिलता नहीं अब वहां  पानी
भैंस से भी कर लिया किनारा
गाय भी अब फिरती आवारा
भूल गए लोग अब गाय को माता बुलाना
मां बाप की नहीं किसी को चिंता
अपने में सब मस्त हैं
संस्कार सब भूल गए
संकीर्णता से त्रस्त हैं
नमस्ते तक तो होती नहीं
भूल गए अब गले लगाना
मिल जाये वो बचपन तो ढूंढ के लाना
ए मेरे बचपन अब तू भी जा
लौट के मत आना
अब बदल गया है  ज़माना
तू लौट के मत आना


- रविंद्र कुमार शर्मा

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बारिश की फुहारों से,
मौसम की बहारों से,
मुझको बहुत प्यार है।

दोस्तों को बुलाने को,
पानी में नाव चलाने को,
ये बचपन भी तैयार है ।

तन-मन मेरा भीग जाये,
खुशियों के ही गीत गाये,
देखो नाच रही मुटियार है।

दिल घूम-घूमकर झूमें,
बूँदे आकर गालों को चूमें,
हुए बादल भी होशियार हैं।

भीग रहा है अपना शहर,
धुल रहा गंदगी का ज़हर,
कितना अच्छा ये हथियार है।

आओ सब बारिश में नहायें,
इसके जल में नफरत बहायें,
इस पर आपका क्या विचार है।

- आनन्द कुमार

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बरसात तो वैसे ही होती है
अब भी अपने गांव में,
दिल याद करता है तुमको
मगर साथअब तुम नहीं होते,
मिट्टी की महक  फूलों सुगंध
सताती है तुम नहीं होते,
आंगन भी  वैसा ही कच्चा
है,यादें हैं तुम नहीं होते,
वो शाम का मंज़र धुँआ भी
शाम का सुंदर तुम नहीं होते,
हरियाली वो खेतों की,धान
की खुशबू तुम नहीं होते,
चांदनी रातें सुहानी और 
चाँदका यौवन तुम  नहीं होते,
बरगद भी बूढ़ा सा याद करता
है मगर अब तुम नहीं होते,
दुबली पतली  सी नर्म नाज़ुक
वो काया, अब तुम नहीं होते,
छाओं नीम की ठंडी, औऱ वो 
इमली भी,तुम नहीं होते,
महफि़लें शादी की सजती हैं
मेहबूब यहां तुम नहीं होते,
बचपन की वो यादें हैं, महक
है ,हल्दी चंदन के उबटन की
दिल धड़कता है मुश्ताक़ याद
करता है तुम नहीं होते,

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

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मुन्नी नाचे संग सावन 

रिमझिम फुहारों संग भीगे आंगन ,
मुन्नी गाए गीत जब आए ये सावन ।।

नहाने भर से बात नही बनती उसकी
 झूमे नाचे जब जमाझम बरसे सावन।।

देखो मुन्नी ज्यादा भींग न जाना तुम 
सर्दी खासी से बचना तुम इस सावन।।

स्कूल की छुट्टी हो जाएंगी, जो भींगी 
हद से ज्यादा तुम बारिश में इस सावन 

लो बिजली अब चमक उठी हैं देखो, 
फुआर में भी मुन्नी नाचे संग सावन।।

- आशी प्रतिभा

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