प्रेम में मैं भेजना चाहती हूं
एक कोमल सा एहसास।
दिल में बसे जज्बातों को
पिरोकर भेजूंगी एक खत।
फिर सोचती हूँ क्या ये
पर्याप्त रहेगा मेरे एहसास।
क्या एक खत में सिमट जाएंगे
नहीं नहीं जो लिखा जा सके।
मेरा प्रेम वो नहीं फिर क्या दूँ
तोहफा ए यार को ऐसा।
जिसका कोई मोल ना हो
जो अनमोल हो सबसे जुदा।
प्रेम को प्रेम से ज़्यादा क्या हि दूँ
पारस सा मेरा यार है क्या दे दूँ।
उसको मैं कोई भी उपहार
मैं खुद तुझको पाकर संवर गयी।
क्या गहना दूँ तुझको मेरे यार
तुझसे हि तो है मेरा श्रृंगार।
चाँद की चाँदनी फीकी है
फ़ूलों की खुशबू फीकी है।
सूरज की रोशनी फीकी है
सावन की हरियाली फीकी है।
जहां भर की खूबसूरती फीकी है
एक मेरे प्यार के सामने।
बस प्रेम को प्रेम से प्रेम लिख दूँ
तुझे उपहार में मेरा प्रेम ही दे दूँ।
- दुर्गेश नन्दिनी नामदेव
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