साहित्य चक्र

20 July 2023

कविताः लड़कियाँ ज़िद नहीं करतीं



बचपन से जिन्होंने भेदभाव देखा,
बेटे की तरफ़ सबका झुकाव देखा,
लिंगभेद का घर में प्रभाव देखा,
फिर भी शिकायत हरगिज़ नहीं करतीं,
ये सच है कि लड़कियाँ ज़िद नहीं करतीं।

होती इन पर, घर की भी जिम्मेदारी,
तभी आ जाती जल्दी समझदारी,
चंचलता को छोड़, सीख जाती दुनियादारी,
स्वयं को अक्लमंद साबित नहीं क़रतीं,
ये बेटियाँ कभी ज़िद नहीं करतीं।

ना जाने कितने सपने बुनती हैं
जीवनसाथी अपना ख़ुद नहीं चुनती हैं,
ख़ामोश रहकर, बहुत कुछ सुनती है,
परिवार के फैसले को ग़लत सिद्ध नहीं करतीं,
ये गुड़ियाँ भला, क्यों ज़िद नहीं करतीं?

अंदाज़ ए बयाँ, आँखों से कह जातीं हैं,
कुछ ख़्वाहिशें बेशक अधूरी रह जाती हैं,
दिल टूटता है, तब भी सह जाती हैं,
किसी के लिये ये गिद्ध नहीं बनतीं,
ये परियाँ लाजवाब हैं, जो ज़िद नहीं करतीं।

त्याग और समर्पण की मूरत हैं,
मन से बहुत ही खूबसूरत हैं,
हर घर की अत्यंत ज़रूरत हैं,
दुनिया उतनी तारीफ़ नहीं करती,
ये लड़कियाँ ज़्यादा ज़िद नहीं करतीं।


                                         - आनन्द कुमार


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