साहित्य चक्र

10 September 2021

कविताः हुए क़त्ल हम



हुए क़त्ल हम बीच चौराहे पर
जान गई इसका कोई गम नहीं

पर दुखी हूं यह जानकर
वो लोग खुद तो धर्मी नहीं थे
जो चीख़ चीख़ कर कह रहे थे
कि मैनें उनके धर्म को ठेस पहुंचाई है

जबकि मैंने तो लिखा था कि

धर्म के नाम पर बलि देना गलत है
चाहे वो मनुष्य की हो या जानवर की

धर्म के नाम पर हिंसा करना गलत है
चाहे वो बचने के लिए हो या मारने के लिए

धर्म के नाम पर ग़रीब से पैसे ऐंठना गलत है
हमेशा दान लेना ही नहीं, दान देना भी चाहिए।

धर्म के नाम पर लड़कियों का शोषण गलत है
चाहे लड़कियां अपने धर्म की हों, या फिर पराए।

धर्म के नाम पर मानसिक शोषण भी गलत है
चाहे तकदीर के नाम पर हो या लकीरों के नाम पर

मैं जानता हूं वहां पर; कुछ तमाशबीन भी खड़े थे
जिनमें कुछ धर्मी थे और कुछ अधर्मी भी थे
धर्मी चुपचाप खड़े अपना धर्म निभा रहे थे

क्योंकि वह जानतें कि गलत हो रहा है
पर अधर्मीयों की तो सुनता ही कैन है

साहब; मैं आप के बारे में नहीं कह रहा
पर क्या आप भी वहीं पर थे


                                      अमनदीप सिंह रखड़ा



No comments:

Post a Comment