साहित्य चक्र

04 September 2021

कविताः मैं एक अध्यापक हूं।


एक बच्चे को 
उसकी क्षमता के अनुसार
समाज में स्थान दिलाना चाहता हूं,
मैं एक अध्यापक हूं..
अपने पढ़ाए बच्चों की सफलता के अलावा
और कोई गुरु-दक्षिणा उससे नहीं चाहता हूं।

एक बच्चे को
उसकी प्रतिभा के हिसाब से
तराश कर चमकता हीरा बनाना चाहता हूं,
मैं एक अध्यापक हूं,
अपने पढ़ाए बच्चों को कामयाब होते देख
मेहनत पर अपनी इतराना चाहता हूं।

एक बच्चे को
जीवन में आने वाली चुनौतियों से
भली-भांति निपटना सिखाना चाहता हूं,
मैं एक अध्यापक हूं..
अपने शिष्यों के सर्वांगीण विकास में ही
अपना मूल्यवान समय लगाना चाहता हूं।

एक बच्चे को
देश, समाज एवं मानवता के कल्याण हेतु
सद्भावना का दूत बनाना चाहता हूं,
मैं एक अध्यापक हूं...
अपनी दी गई शिक्षाओं के माध्यम से
विश्व-बंधुत्व का संदेश फैलाना चाहता हूं।


                                     जितेन्द्र 'कबीर'


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