दोस्तों..! आज लगभग प्रत्येक नागरिक देश में चल रहे "निजीकरण" को लेकर अपनी ही एक अलग परिभाषा दें रहा है कोई कहता है, कि निजीकरण हमारे देश के विकास हेतु आवश्यक है और इसके देश में अपनाने से हमारे देश का विकास संभव है।
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि हमारा प्रशासन अपने निजी स्वार्थ के चलते सार्वजनिक संपत्ति को निजीकरण में बदलने का कार्य कर रही है ताकि सार्वजनिक संपत्ति पर कुछ लोग अपना एकाधिकार प्राप्त कर अपना स्वार्थ पूरा कर सकें।
पर किसी भी विश्लेषण पर पहुंचने से पहले हमें निजीकरण क्या होता है तथा या देश के लिए कितना लाभदायक है। और कितना नुकसानदायक, इसके पक्ष विपक्ष सब के बारे में चर्चा करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
चलिए जानते हैं कि निजी करण किसे कहते हैं ? और क्या यह हमारी देश की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है या यह केवल शासन की स्वार्थ सिद्धि मात्र है।
निजी क्षेत्र क्या है ?
निजी शब्द का अर्थ होता है व्यक्तिगत अर्थात जो सार्वजनिक परिधि से बाहर हो। निजी क्षेत्र का अर्थ है जिसमे एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के समूह का स्वामित्व हो। आर्थिक दृष्टिकोण से देखे तो निजी क्षेत्र मे ऐसी इकाइयां, संस्थान या उद्योग आते है जिनमे मालिकाना हक़ किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का होता है। दूसरे शब्दों मे ऐसी इकाइयां, संस्थान या उद्योग जो सार्वजनिक नियंत्रण के बाहर आती है उन्हें निजी क्षेत्र कहा जाता है।
निजीकरण की विशेषता क्या है ?
स्वामित्व का स्थानांतरण – निजीकरण के तहत व्यपार की इकाइयों पर सरकार का स्वामित्व घटता है और निजी उद्योगपतियों के हाथों मे चला जाता है। कुछ उपक्रमों को सरकार पूरी तरह से निजी क्षेत्र मे परिवर्तित करती है तो कुछ उपक्रमों मे सरकार अपनी उपस्थिति को धीरे धीरे कम करती है।
सरकारी नियंत्रण ख़त्म-स्वामित्व के साथ साथ इन उपक्रमों पर सरकारी नियंत्रण भी खत्म हो जाता है। निति नियम बनाने से लेकर प्रबंधन तक सभी कुछ बाजार के नियमो के अनुसार तय होता है।
आर्थिक स्वतंत्रता- अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों मे सरकार का एकाधिकार होता है। निजीकरण के माध्यम से अर्थव्यवस्था पर सरकारी अधिपत्य कम होता जाता है और अर्थव्यवस्था बाजार नियमों के अनुसार संचालित होती है। जिसके चलते आर्थिक स्वंतंत्रता का माहौल तैयार होता है।
निजीकरण के उद्देश्य क्या है ?
कार्यक्षमता मे सुधार- सरकार द्वारा नियंत्रित कंपनियां अधिकतर राजनितिक हस्तक्षेप के चलते अपनी कार्यक्षमता अनुसार काम नहीं कर पाती है । जिसका परिणाम अर्थव्यवस्था की विकास की गति धीमी पड़ जाती है। ठीक इसके विपरीत निजी क्षेत्र की कंपनिया किसी राजनैतिक एजेंडे से प्रेरित नहीं होती है। केवल विकास के एजेंडे से प्रेरित ऐसी कम्पनियों की कार्यक्षमता अधिक बढ़ जाती है।
सरकारी राजस्व मे बढ़ोत्तरी- निजीकरण प्रक्रिया के पीछे सरकार की सबसे बड़ी मंशा होती है राजस्व मे बढ़ोत्तरी। कई बार सरकार अपना राजस्व घाटा कम करने के लिए निजीकरण प्रक्रिया को अपनाती है। इस प्रक्रिया से मिलने वाली धन राशि को सरकार बजट घाटा कम करना , भिन्न प्रकार की जनकल्याण योजनाओं पर खर्च करना जैसे विकल्पों के लिए करती है।
उदारीकरण की नीति को बढ़ावा- वैश्विक बाजार के इस दौर मे सरकार सबसे अलग रहकर विकास नहीं कर सकती है। सरकार को आर्थिक उदारवाद नीति को अपनाकर अर्थव्यवस्था के दरवाजे सभी के लिए खोलने जरुरी है। निजीकरण सरकार की उदारीकरण नीति का ही एक प्रारूप है। उदारीकरण का अर्थ होता है जब सरकार व्यापार के नियमों को सरल बनाये जिससे अर्थव्यवस्था की गति को तेजी मिले।
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करना- अर्थव्यवस्था के दरवाजे सभी के लिए खोल कर सरकार एक तरह से बाजार मे प्रतिस्पर्धा के अवसर भी पैदा करती है। निजीकरण के द्वारा सरकार निजी उद्योगपतियों अर्थव्यवस्था मे भागीदारी करने का अवसर प्रदान करती है। जिसके कारण बाजार मे प्रतिस्पर्धा पैदा होती है। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पदार्थो की गुणवत्ता बढ़ाने मे सहायक होती है। अंत मे इसका फायदा उपभोगता को ही मिलता है।
निजीकरण से लाभ
प्रदर्शन में सुधार- सरकार द्वारा संचालित उद्योग अधिकतर राजनीति से प्रेरित होते है। और प्रसाशन की पेचीदगियों के चलते फैसले अक्सर देरी से होते है। जिसका असर सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनियों के कार्यप्रदर्शन पर पड़ता है । वहीँ निजी क्षेत्र की कंपनिया मुनाफे के लक्ष्य पर केंद्रित होती है इसलिए उनकी कार्यक्षमता बेहतर होती है।
उत्पादकता में बढ़ोत्तरी- सरकार को समाज के हर क्षेत्र का रक्षण और पोषण करना होता है। इसलिए उसे संसाधनों का सिमित ढंग से उपयोग करना होता है। जरुरी साधनों की कमी के कारण सार्वजनिक इकाइयों की उत्पादकता पर असर पड़ता है । निजी क्षेत्र मे निर्धारित उदेश्यों की पूर्ति के लिए साधनो का उचित उपयोग किया जाता है। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के मुकाबले निजी क्षेत्र की कंपनियों की उत्पादकता बढ़िया होती है।
गुणवत्ता मे सुधार- सार्वजनिक क्षेत्र की विशिष्टउत्पाद या सेवा से जुडी कंपनी का बाजार मे एकाधिकर होता है। उचित प्रतिस्पर्धा न होने कारण यह सरकारी कंपनिया गुणवत्ता पर विशेष ध्यान नहीं देती है। ठीक इसके विपरीत कुशल प्रबंधन क्षमता और कार्यक्षेत्र मे विशेषज्ञता, और बाजार मे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के चलते निजी क्षेत्र के उत्पादों की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी होती है।
उत्तम प्रबंधन- निजीकरण प्रक्रिया के चलते कंपनियों के प्रबंधन मे सुधार होते है। निजी कंपनियों के प्रबंधक कंपनी के मालिक के प्रति जवाबदेह होते है इसलिए मुनाफे को बढ़ाने के लिए प्रबंधन के उत्तम से उत्तम स्वरुप को अपनाते है।
आकर्षक निवेश- उचित संरचना और उत्तम साधनों के चलते निवेशक निजी क्षेत्र की कंपनियों पर अधिक भरोसा करते है। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के मुकाबले निजी क्षेत्र की कंपनियों मे बढ़िया निवेश पाया जाता है।
राजनितिक हस्तक्षेप मे कमी- निजी क्षेत्र मे राजनितिक हस्तक्षेप कम होता है या बिलकुल भी नहीं होता। बाजार मे मांग और आपूर्ति के अनुसार कंपनियां नीतिगत फैसले करती है। मूल्यों मे कमी और पदार्थो मे गुणवत्ता इसका परिणाम है।
भ्रष्टाचार मे कमी- राजनीतिक हस्तक्षेप मे कमी आने से भ्रष्टाचार के अवसर भी सिमित हो जाते है। निजीकरण के कारण अर्थव्यवस्था पर लाल फीताशाही (अफसर शाही) का दबदबा कम होता है जिसके चलते भ्रष्टाचार मे कमी होना लाजमी है।
निजीकरण के नुकसान
राजनीतिक जवाबदेही- सरकार जनता की प्रतिनिधि होती है इसलिए जनता के प्रति जवाबदेह भी होती है। इसलिए सार्वजनिक उद्योगों की सफलता और असफलता के लिए सरकार को जनता बाध्य कर सकती है। किन्तु निजी क्षेत्र के उद्योगपतियों की जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती है।
सामाजिक उद्देश्यों की कमी- निजी क्षेत्र मे सामाजिक उद्देश्यों के प्रति उदासीनता नजर आती है। केवल व्यापरिक लाभ कमाना ही निजी क्षेत्र का एकमात्र लक्ष्य होता है। भारतीय संविधान मे जिस सामाजिक और आर्थिक न्याय की बात कही गयी है उस लक्ष्य को निजीकरण के द्वारा हासिल करना मुश्किल है।
आर्थिक असमानता- समाज मे आर्थिक समानता बनी रहे और सभी को पर्याप्त मात्रा मे संसाधन मिले यह निश्चित करना सरकार का दायित्व है। इस दायित्व को सरकार केवल तभी निभा पायेगी जब सार्वजनिक साधनों पर उसका नियंत्रण होगा। निजीकरण माध्यम से अर्थव्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण कम होता है तो निजी उद्योगपतियों का दबदबा बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप जहां एक तरफ रोजगार की कोई गारन्टी नहीं रहती वही दूसरी तरफ प्रति व्यक्ति आय दर मे असंतुलन बढ़ जाता है।
व्यापारिक एकाधिकार- सहचर पूंजीवाद के चलते सरकार के आर्थिक फैसलों का फायदा केवल कुछ गिने चुने मुठीभर उद्योगपति वर्ग को ही मिलता है। जिसके कारण बाजार मे एकाधिकार बढ़ेगा और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के अवसर कम होंगे।
निष्कर्ष- व्यापार करना सरकार का काम नहीं है। इसलिए अर्थव्यवस्था का पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण मे रहना ठीक नहीं है। किन्तु राष्ट्रहितों का ध्यान रखते हुए शिक्षा, स्वस्थ , सुरक्षा से जुड़े क्षेत्र पर सरकारी नियंत्रण आवश्यक है। भारत जैसे देश मे जहाँ सामाजिक और आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा है वहाँ सरकार आर्थिक मोर्चे पर पूरी तरह से निजी क्षेत्र पर निर्भर नहीं रह सकती है।
सार्वजानिक क्षेत्र के औद्योगिक संस्थानों की कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए सरकार को केवल निजीकरण की तरफ ही नहीं देखना चाहिए। बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के काम करने के तरीकों मे सम्पूर्ण परिवर्तन करना चाहिए। सरकार के पास योग्यता और साधनों की कमी नहीं है। अगर कमी है तो इच्छाशक्ति और दॄढ संकल्प की।
डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"
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