साहित्य चक्र

04 September 2021

कविताः सांवरिया


"देवकीनन्दन, यशोदानन्दन 
कितने नाम गिनाए 
सांवरिया है रूप सलोना,
भादो मास,कृष्ण पक्ष मे आए।

अंधियारी,तूफानी रात,
मेघ भयानक रूप दिखाए
फिर..
पुत्र विरह की वेदना से 
देवकी का मन जब घबराए,
एक माँ के नयन के नीर से 
धरती माँ भीगी जाए, 
पर न रहा कोई सहाय..।

मध्य रात्रि शिशुरूप में
'श्री विष्णु' धरती पर आए।
बेसुध हुए द्वारपाल,
 माया खुद ही रचाए।

टूट गई थी बेड़ियां , 
वसुदेव.. कृष्ण,
यशोदा को दे आए।
जो हाथो में कंस के जाती, 
वो पुत्री ले आए।

करने चला कंस,
वध जब उसका..
वह पुत्री उड़ चली भगवती,
तेरा काल आ गया धरा पर,
अट्टहास कर चली भगवती।

उधर..
गोकुल मे रौनक छायी
जैसे पूरी ब्रह्माण हर्षाई 
नन्द और यशोदा ने
 पलके बिछाई
सखियाँ मंगल गीत हैं गाँई 
घर-घर बजे बधाई,
देखो आएं कृष्ण कन्हाई

बजे ढोल, मंजीरा, नगाड़ा
जैसे स्वर्ग धरती पर उतारा
रूप मनोहर,छवि निराली
देव नयन दर्शन को प्यासी
मां बार-बार लेती है बलईया 
देखो आए कृष्ण कन्हैया
हाँ.. घर-घर बजे बधाई 
कि देखो आए कृष्ण कन्हाई"।


                         विभा श्रीवास्तव




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