साहित्य चक्र

11 September 2021

अभी भी हिंदी वहां नहीं जहां बताई जाती है


दिखावे के लिए हिंदी-हिंदी सब करें
ऑफिस में हिंदी में नहीं होता कोई काम
दिखावे की हिंदी से ही ले रहे 
दफ्तरों में बांटे जाते है बड़े-बड़े इनाम

पांच से चौदह सितंबर तक हर वर्ष
हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है
उससे पहले पूरा वर्ष हिंदी का मुखड़ा
किसी को नहीं सुहाता है

बड़े बड़े मंत्री और अधिकारी 
वो खुद हिंदी में कितना काम करते हैं और करवाते है
जिन पर है हिंदी को आगे ले जाने की जिम्मेवारी
यह तो फाइलों पर उनके द्वारा लिखे नोट बतलाते हैं

हिंदी के लिए राजभाषा मंत्रालय है
राजभाषा के लिए संसदीय समिति भी बनाई जाती है
पर किसमें इतनी हिम्मत जो उन से पूछे
वो समिति जब दौरे पर जाती है तो क्या कर के आती है

आंकड़ों का खेल हैं हकीकत कुछ और है
अभी भी हिंदी वहां नहीं जहां बताई जाती है
तीन छह महीने में होती हैं बैठकें
बैठकों में फिर आंकड़ों की जादूगरी दिखाई जाती है

देश का करोड़ों रुपया हिंदी के नाम पर
पानी की तरह बहाया जाता है
हिंदी के हिस्से में तो कुछ नहीं है आता
हिंदी का तो सिर शर्म से झुक जाता है

आज भी मेरे देश में बड़ी बड़ी निजी 
कंपनियों में फर्राटे से अंग्रेज़ी चलती है
हिंदी तो बेचारी दूर कोने में खड़ी
अंदर ही अंदर बुरी तरह से जलती है

अंग्रेज़ी तो गोरों की पसंद थी
देखने में भी बेशक इसका गोरा रंग है
हिंदी तो हिन्द की ही बेटी है
फिर भी क्यों आज तक अपने घर में तंग है

क्या कभी वास्तव में वह दिन भी आएगा
जब लोगों के दिमाग से अंग्रेज़ी का भूत उत्तर जाएगा
हिंदी हकीकत में सरताज बनेगी हिन्द की
हर हिन्दोस्तानी का सीना गर्व से तन जाएगा


                                                     रवींद्र कुमार शर्मा


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