साहित्य चक्र

04 September 2021

जीवन की परिभाषा हैं





पल-भर में  हँसना हैं, पल -भर में रोना हैं ।
कभी हम इंसा तो कभी यादें बन जाना है।।
दर्द से भी गुज़रना हैं काँटो पे भी चलना हैं ।
कभी मख़मली बिस्तर तो कभी जमीं पे लेट जाना है ।।

छप्पनभोग मिलते कभी, तो कभी भूखे पेट सो जाना है।
यह जिंदगी हैं साहब हर मोड़ पे हमें  इम्तिहान देना है।।
हर पल हर घड़ी कुछ नया सीखना और सिखाना हैं ।
जीने की तो चाहत नही फिर भी अपनों के लिये जीना हैं।।

संघर्षों का दौर हैं यह जीवन लड़ना हैं हर मुसीबतों से।
डटे रहना है मंजिल पाना हैं, कभी हार नही मानना हैं ।।
यह जिंदगी हैं वक्त पे अपना तो वक्त पे पराया बनाता हैं।
मुश्किल हो जाता हैं जीना जब अपना ही नहीं पहचानता हैं।।

वक्त का पहिया कुछ यूं मुड़ा छूटा जग सारा हैं ।
सही गलत की फिक्र नहीं बस पैसे की मोह माया हैं ।।
ठोकर खाकर गिरते और संभलते हैं फिर आगे बढ़ना हैं।
मतलबी दुनिया में न अपना है कोई न कोई पराया हैं ।।

पल -पल रंग बदलती हैं हर कोई की अपनी -अपनी  गाथा हैं।
कभी सुख का सवेरा तो कभी गम की अंधियारा हैं ।।
अमीर या गरीब हो  परिस्थितियों के आगे सबको सर झुकाना हैं ।
न मुझसा कोई न तुमसा कोई यही जीवन की परिभाषा हैं।।


                     मनीषा कुमारी "मन्नू"


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