साहित्य चक्र

04 September 2021

गुरु शिष्य एक अनोखा बंधन

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है।

      गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
      गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।




        
          देश में शिक्षक दिवस डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक शिक्षक होने के साथ-साथ आजाद भारत के दूसरे उप राष्ट्रपति और पहले राष्ट्रपति थे। साथ ही एक महान दार्शनिक भी थे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने करीब 40 साल तक एक शिक्षक के रूप में कार्य किया था।

            
     गुरु शिष्य का नाता तो सदियों पुराना है। एक गुरु ही है जो अपने शिष्यों के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हर एक व्यक्ति जन्म के साथ ही एक कुम्हार के कच्चे घड़े के समान होता है। शुरुवाती शिक्षा संस्कार रूपी बातों से घर परिवेश से ही शुरू होती है, इसलिए तो माता पिता को प्रथम गुरु माना गया है। पर जब वह पाठशाला में प्रवेश करता है, तब बच्चे के व्यक्तित्व को जीवन को मूल्यवान बनाने में अहम भूमिका एक गुरु ही निभाता है।

      
        गुरु शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का ही, आदान प्रदान नही होता है। बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है। उसका उद्देश रहता था कि, गुरु उसका कभी अहित सोच ही नही सकते। यही विश्वास गुरु के प्रति, उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण है।

             
          एक शिक्षक कभी भी साधारण नहीं हो सकता। क्योंकि वह एकमात्र ऐसा इंसान है जो आपको साधारण से असाधारण बनाने की क्षमता रखता है। आपकी समझ और आपका ज्ञान विकसित करना ही उसका उद्देश्य नहीं होता है, बल्कि वह आपको प्रेरणा देता है, आपका मार्गदर्शन करता है। आपके जीवन में एक उद्देश्य लाता है।


                                                         डॉ. सपना दलवी




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