साहित्य चक्र

12 September 2021

कविताः तुम फिर मिलोगे



तुम मुझे फिर मिलोगे
कहां, कैसे,कुछ पता नहीं !

शायद मेरी कल्पनाओं के पर
पे सवार होकर..
मेरी प्रेरणा के स्रोत बन कर
मेरी लेखनी में समा जाओगे..
या फिर शब्दों में ढल कर
मेरे कोरे कागज़ पे बिछ जाओगे ?

यकीं है मुझे मेरे हमदम
हर तूफान से बचाकर तुम..
मीठी फुहारों से नहला दोगे !

आ कर मेरी ज़िंदगी में..
मुझे सम्पूर्ण कर दोगे !

और फिर वो दिन भी आएगा 
जब तुम मेरी जीत बनकर..
मुझे 'अपराजिता' कर दोगे !

मैं और तो कुछ नहीं जानती..
पर मेरे रूह में जब जब तुम उभरोगे
एक सिहरन सी जगाकर
क्या जिस्म के साथ यादों को भी
फना कर दोगे ?

                                       अपराजिता_मेरा_अंदाज


2 comments:

  1. वहहहह जी क्या बात है. ग्रेट

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