साहित्य चक्र

04 September 2021

कविताः शिक्षक



               
हाँ मैं एक शिक्षक हूँ।
शिक्षक होने का दंभ मैं भरता हूँ।
राष्ट्र निर्माता होने पे गर्व मैं करता हूँ।
हाँ मैं एक शिक्षक हूँ।

यह सच है कि मैंने,
बच्चों को ख़ूब पढ़ाया।

पढ़ा लिखा कर उन्हें
डॉक्टर औऱ इंजीनियर बनाया।
पढ़े लिखे लोगों से इस जहां को सजाया।

पर क्या सच में उन्हें इंसान बना पाया ?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा, 
यह झूठा अभिमान है मेरा..

शिक्षक हूँ , शिक्षा देना काम है मेरा ।
मैंने अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया।

बच्चों को ABCD और वर्णमाला 
ख़ूब रटवाया।
पर क्या सच में उन्हें शिक्षित कर पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा..

गणित के शिक्षक होने की तो
गजब शान है मुझे।

अपने विषय का विशेषज्ञ होने
का अभिमान है मुझे।
मैंने बच्चों को गणितीय 
फ़ॉर्मूला व ट्रिक्स ख़ूब सिखाया।

पर क्या आत्मा को परमात्मा से जोड़ने
का एक सूत्र भी बता पाया ?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा..

पर्यावरण के शिक्षक होने का गर्व है मुझे।
पर्यावरण संरक्षण के पाठ को मैंने खूब पढ़ाया।

बच्चों को प्राकृतिक सौंदर्य का बोध कराया।
पर क्या इंसानियत का एक पौधा भी लगा पाया।

अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा..

साहित्य के शिक्षक की तो बात ही मत पूछो।
किस्सों, कहानियों व कविताओं को ऐसे रटवाया।

खुद को उन नौनिहालों का भाग्य विधाता बताया।
पर क्या सच मे उनका चारित्रिक निर्माण कर पाया ?

अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा..


                                   कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'


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