साहित्य चक्र

04 September 2021

कविताः मैंने कहा तो बहुत कुछ


मैंने कहा तो बहुत कुछ पर तुमने सुना नहीं..
अब यह ना कहना कि जुबां से तो कुछ कहा नहीं,
पढ़ कर तो देखो मेरी आंखों से..

क्या सिर्फ समझ पाओगे इन बातों से,
कभी तो सुनकर देखो जो मैंने कहा नहीं..

बेचैनियां बढ़ जाएंगी,
खामोशियां चिल्लाएंगी..
बहला ना पाएगा जमाना,
तनहाइयां सताएंगी..

फिर न कहना ऐसा तो पहले कभी हुआ नहीं..
मैंने कहा तो बहुत कुछ पर तुमने सुना नहीं..

जमाने की बातों में तुम ना आना..
जब कोई साथ ना दे तब मुझे बुलाना.. 

साथ भले ही मांग लेना..
पर मुझे कभी ना आजमाना.. 

मोहब्बत का यह दरिया है कोई सूखा कुआँ नहीं.. 
फिर न कहना ऐसा तो पहले कभी हुआ नहीं..

मैंने कहा तो बहुत कुछ पर तुमने सुना नहीं..
इक बार फिर तुम आओगे..

धीमे से मुझे बुलाओगे,
शायद तब मैं सुन ना पाऊं..
पुकारते रह जाओगे,
ये वो आग है जिसमें कोई धुआँ नहीं..

फिर न कहना ऐसा तो पहले कभी हुआ नहीं..
मैंने कहा तो बहुत कुछ पर तुमने सुना नहीं..


                         अपराजिता मेरा अन्दाज़


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