साहित्य चक्र

04 September 2021

कविताः अश्रुपूरित श्रद्धांजलि


सम्पूर्ण जीवन का आप  पूर्ण  विराम है
मोक्ष आपको मिले बस यही अरमान है

माया  मोह  का हर  बंधन  तोड़कर
आप चले गए सबको क्यूँ  छोड़कर

चले जाने  से आपके  जीवन  हैरान  है
मोक्ष आपको मिले बस यही अरमान है

देखो आप किस कदर सब खामोश है
जाने  से  आपके किसी को न होश है

बिना आपके लगे जीवन हुआ वीरान है
मोक्ष आपको मिले बस यही अरमान है

ऐसा लगता है कि अब धूप ढल गयी
पलकें है गीली ज़िन्दगी फिसल गयी

भुलाये  नहीं भूलते अब मन परेशान है
मोक्ष आपको मिले बस यही अरमान है

मातृभूमि  के  हित  जीवन  पूर्ण किया
मुश्किलों से मज़बूत आपने प्रण किया

आशीर्वचनों का आपके हम पर एहसान है
मोक्ष आपको मिले  बस  यही  अरमान  है 


                           कल्पना भदौरिया "स्वप्निल"


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