लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर नए-नए।
मिलते हैं शहरे ग़ैर में दिलवर नए-नए।।
तहज़ीबे नौ का दौर है हर बात है नई।
औरत भी अब बदल रही शौहर नए-नए।।
आएगी जैसे-जैसे क़यामत करीब जब।
देखोगे और भी यहाँ मंज़र नए-नए।।
कुर्सी पे हमने जिनको बिठाया था शान से।
ढाते हैं अब सितम वही हम पर नए-नए।।
जो रास्ता बता रहे खादी लिबास में।
रहज़न से कम नहीं हैं ये रहबर नए-नए।।
मिलती है बेकसूर को अक्सर सजा यहाँ।
डरते नहीं गुनाह से अफसर नए-नए।।
हमदर्द बन के लोगों ने लूटा निज़ाम को।
मिलते रहे हमेशा सितमगर नए-नए।।
निज़ाम- फतेहपुरी
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