साहित्य चक्र

16 January 2021

नापाक दर्द

अपनी आत्मा को झिझजोड़ के देखना
वो भी अश्क बहाने लगेगी
मुझे सोच कर।
अगर फिर भी
तुमको सुनाई न दे तो
समझ लेना तुम बहरे हो
कानों से नहीं अपनी सोच से भी।

मेरे बहते हुए अश्कों में
महसूस करना,
मेरी अंतरात्मा के दर्द को।
अगर महसूस न हो
तो समझ लेना
तुम पत्थर हो दिल से ही नही
अपने जमीर से भी।

कभी तलाश करना
तनहाई में मेरे दर्द को
मेरी चीखती आहों को,
अगर दिखाई न दे
तो समझ लेना
तुम अंधे हो आंखों से भी
और जज्बातों से भी।

                                                        राजीव डोगरा 'विमल'



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