काश, फिर मुलाक़ात हो जाए
हम फिर तेरे पास हो जाए...
तेरी बचकानी बदमाशियों से
फिर वही शरारती नादानियां से
उस पल का फिर से एहसास हो जाए...
काश फिर मुलाक़ात हो जाए
तू फिर मेरे साथ हो जाए...
जिद्दी है ये मन बड़ा, बड़ी मुश्किल इसको समझाना
क्यों ?हर घड़ी इसे बस तेरे ही यादों में है जाना...
हां, ये मुमकिन नहीं... तेरा अब साथ हो जाना
फिर भी आस लगाये बैठा है, हर दिन में ये परवाना
काश, फिर मुलाक़ात हो जाए
हम फिर तेरे साथ हो जाए...
-अमित "अनंत"
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