साहित्य चक्र

27 January 2021

हां..! मैं तुमसे कभी मिला नहीं



हां..! मैं तुमसे कभी मिला नहीं,
पर एक खुशबू है,
जो मुझे छूकर निकलती है,
और मैं नयेपन से भर जाता हूं।

हां, मैंने तुमको कभी देखा नहीं,
पर एक चेहरा है,
जो हर रोज सुबह के 4 बजे मुझे 
अलविदा कहकर गुम हो जाता है
और मैं ठगा- सा रह जाता हूं।

हाँ मैंने तुमसे कभी बात नहीं की,
पर एक आवाज है,
जिसके साथ मैं 
अपनेपन से भरा रहता हूं
और जब वो खामोश होती हैं,
तो मैं किसी अनजाने डर से थर-थराता हूं।

हां मैं तुम्हें सही से जानता तक नहीं,
पर कोई है जिससे मेरी रूह भी वाकिफ है,
और मैं उसके अजनबी हो जाने भर से खौफ खाता हूं।

हां मैं तुम्हारे बारे में ज्यादा सोचता भी नहीं,
पर कोई ख्याल है,
जो मुझे रात की खामोशी से रू-ब-रू कराता है
और मैं उस चिर- परिचित सी नींद के आगोश में
बेखबर सा चला जाता हूं।

हां..! मैं तुमसे कभी मिला नहीं...

                            रविता राठी

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