ये कैसे जीवन साथी है
जन्मों साथ निभाने की
कसमें खाते है वही
बुढ़ापे में एक दूसरे का
साथ छोड़ देते हैं।
कभी कमरा बाँटते
तो कभी बिस्तर
तो कभी मन
तो कभी बेटों द्वारा
बाँट दिये जाते।
कभी तो एक कमरे में
दो अपरिचित बने रहते
एक दूजे को ताना मारते
तो कभी मन ही मन कुढ़ते
एक दूसरे के माता पिता को
शादी का दोषारोपण करते।
क्या शादी शाररिक सुखों
बच्चों को पैदा करना भर है
फिर उनको पालते पासते
बुढ़े हो जाने का नाम है
फिर बच्चे क्या कहेंगे
दमाद वाले बन गए है
एक बिस्तर पर कैसे
साथ साथ सो सकते हैं
कोई देखेगा तो क्या कहेगा।
जब पति पत्नी गृहस्थी
के दो पहिले है फिर
गाड़ी अकेले कैसे चलेगी
जीवन संगनी के रहते
विधुर जीवन क्यों जिये।
कुमारी अर्चना
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